क्या आप नयी नयी बच्चों की कहानीयों की तलाश कर रहे हैं तो आप सही जगह पहुंचे हैं। हमने आपके लिए कुछ नयी और Moral (inspirational stories) कहानीयां लिखी है।
करोड़ीमल की नयी और अच्छी कहानी
बहुत दिनों पहले, हमारे देश की जुनागढ रियासत में एक बुद्घिमान व न्यायप्रिय राजा यशदेव राज्य करता था। राजा यशदेव अपने निष्पक्ष व अनुठे न्याय के लिए दुर-दुर तक प्रसिद्ध था। उसकि न्यायप्रियता की नजह से पुरी रियासत में सम्पन्नता और समृद्घि थी। प्रजा सुखी व प्रसन्न थी।
इसी रियासत में एक तेली रहता था। वह बहुत ही मेहनती और ईमानदार था। वह दिन-रात मेहनत करता था। अपनी आमदनी में से थोडी-थोडी बचत कर उसने चाँदी के सिक्के जमा किए। एक बार तेली को एक जरुरी काम से बाहर जाना पडा। वह घर मे अकेला रहता था तथा उसने सिक्को को सुने घर में छोडना उचित नही समझा। बहुत ही सोचने के बाद उसने चाँदी के सिक्को को अपने दोस्त सेठ करोडीमल को देने का फैसला लिया। करोडीमल के पास चाँदी के सिक्के रखकर अपने कान चला गया।
अपना काम निपटाकर सप्ताह भर बाद वह वापस आ गया। वापस आते ही अपने देस्त सेठ करेडीमल के पास अपनी चाँदी के सिक्को की थेली लेने पहुँचा । चाँदी के सिक्के देखकर उसके नीयत ने फर्क आ गया। उसने सोचा कि तेली को चाँदी के सिक्के मुझे देते हुए किसी ने नही देखा है और ना ही उसके पास कोई सबुत है जिससे यह साबित हो सके कि उसने मुझे चाँदी के सिक्को से भरी थेली दी थी।
जब तेली करोडीमल के पास पहुँचा तो सेठ ने उसकी बहुत आवभगत की। ईधर-उधर की बाते करने के बाद तेली ने सेठ से अपनी चाँदी के सिक्को की थेली वापस माँगी। यह सुनकर करोडीमल ने तेवर बदलते हुए कहा , तुम होश मे भी हो या नहीं? कब दी थी तुमने मुझे कोई थेली? कोई सबुत है तेरे पास?
तेली सेठ करोडीमल के इस जवाब के लिए कतई तैयार नहीं था। तेली के पैरों तले जमीन खिसक गई। तेली ने बडे ही विनम्र भाव से बोला –भाई तुम मेरे बचपन के दोस्त हो। मैं एक निर्धन आदमी हुँ। ऐसा दगा मेरे साथ न करो। मेरी थैली लौटा दो। तुम्हारे पास ऐसे भी दौलत की कोई कमी नही है। मुझ गरीब के चंद सिक्कों से तुम और ज्यादा धनवान नहीं बन जाओगे ।
तेली की इन बातों का सेठ करोडीमल पर कोई असर नहीं हुआ। उसने तेली को डाटते हुए कहा- तुमसे मैं कह चुका हुँ कि मेरे पास तुम्हारी कोई थैली नही हैं। कुम सीधी तरह यहाँ से चले जाओ या नौकरों से धक्का दिलवार बाकर निकालुं?
तेली बेचारा सिर नीचे कर उदास मन से वहाँ से लौट आया। तेली ने सोचा कि नवह राजदरबार में राजा से न्याय की माँग करेगा।
अगले दिन तेली ने राजदरबार में पहुँचकर सारी दास्तान राजा को सुनाई। राजा ने पुरे ध्यान से तेली की बात सुनी। फिर सेठ करोडीमल को दरबार में बुलवाया। उसने सेठ से पुछा-क्या तेली का कथन सच है? तब सेठ करोडीमल ने कहा –नही यह तेली झुठ बोल रहा हैं। इसने कोई सिक्कों की थेली मुझे नही दी थी। कुछ दरबारीयों के अनुसार तेली का कहना सही था और कुछ का मानना था कि सेठ करोडीमल सच्चा हैं।
राजा ने कुछ सोचकर सेठ करोडीमल की तिजोरी की तलाशी के आदेश दिए। तत्काल तिजोरी की तलाशी ली गई। तिजोरी से बरामद रुपयों की अनेक थैलियों में से अपनी थैली खोजने के लिए राजा ने तेली से कहा । तेली ने अपनी थैली ढुंढकर राजा को थमा दी।
यह देखकर सेठ करोडीमल बोला – राजन तेनी झुठा हैं। सब थैलीया मेरी है।
राजा ने सेठ करोडीमल के चीखने चिल्लाने पर कोई ध्यान नहीं दिया। राजा ने साफ बर्तन में पानी मंगवाया। राजा ने थैली के सारे सिक्के पानी में डाल दिए। कुछ समय में सिक्के पानी में जुब गए और पानी के उपर तेल की कुछ बुँदे तेरने लगी। राजा ने झट से फैसला सुना दिया। उसने सेठ करोडीमल को कारावास की सजा सुना दी और तेली को उसके चांदी के सिक्के थैली में भरकर लौटा दिए।
राजा के इस फैसले को सुन कर दरबारी हैरत में पड गए। तब राजा ने कहा – इसमें अचरज की भला क्या बात है? तेली के सिक्के थे, इसलिए पानी में पडते ही उसके हाथों पर लगा तेल ऊपर तैर आया।
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अगर यह सिक्के सेठ करोडीमल के होते तो उन पर तेल न लगा होता। विश्वास न हो तो देख लो। राजा ने पानी से भरा एक और बर्तन मंगवाया और उसमें सेठ की दुसरी थैली के सिक्के डाले, लेकीन इस बार तेल उपर नही आया ।
अकलमन्द लडके की अच्छी कहानी [intelligent boy]
एक लडका एक जमींदार किसान के घर मजदुरी करता था। किसान और उसकी पत्नी बेहद कंजुस थे। वे दोनों उस लडके से काम को खुब लेते लेकिन भोजन भरपेट नहीं देते थे। लडका बहुत परेशान रहता।
एक दिन लडके ने अपनी परेशानी और अपने मालिक को छकाने का हल ढुंढ ही लिया। वह काम छोडना नही चाहता था। कान छोडता तो भुखा नरता । अत: एक दिन जब किसान ने लडके को खेत पर काम करने के लिए भेजा तो किसान कि पत्नी ने एक डिब्बे मे उस लडके का खाना रख दिय़ा। तभी किसान ने लडको हीदायत दी –जल्दी काम करके लौटना। यहीण घर पर भई काम है ।
-ठीक है। -लडके ने जवाब दिया और चला गया। रास्ते लडके ने डिब्बे को खोलकर देखा तो उसमें रुखी-सुखी रोटी औरअचार था। लडका रास्ते मे पेड के नीचे रुका।
-नमस्ते पेड दादा ।
-नमस्ते – पेड की ओर से लडके ने स्वयं जवाब मे कहा।
-मैं खेत में काम करुं याआराम से तुम्हारी छाया में रहुं ।
-आराम से लेटो। पेड की ओर से लडके ने जवाब दिया ।
-परतुं अपने डिब्बे से भी तो पुछ लो।– पेड की ओर से लडके ने सवयं से कहा।
-डिब्बे से क्या पुछना। उसमें तो रुखी –सुखी रोटी और आचार है। डिब्बा तो बिल्कुल आराम करने को कहता है।–लडने आश्वस्त होकर कहा ।
-फिर ठिक है ।- पेड की तरफ से लडके ने सहमती दी । आखिर भुखे पेट से तो मेहनत नही की जा सकती। लडका पेड के नीचे लैटकर आराम करने लगा ।
किसान को जब पता चला कि खेत पर कुछ भी काम नही होता और वह लडका एक पेड के नीचे आराम से लेटा रहता है। तोवह अगले दिन लडके पीछे-पीछे गया और देखा कि लडका एक पेड के नीचे लेचा हुआ है।
-क्यों रे, क्या कर रहा है यहाँ? . कौनसा खेल है जो तु खेल रहा है? तुने खेत मे जरा भी कटाई का काम नही किया । तु खेत पर कटाइ का काम शुरु कब करेगा?- किसान ने डाटकर लडके से पुछा ।
-जब मुझे डीब्ब् का आदेश मिलेगा, तब मैं खेत पर काम करुंगा।
– लडके ने उतर दिया। फिर लडके ने कहा
– अभी खाने डिब्बे और पेड की आज्ञा नहीं हुई है कि मैं खेत की कटाई करुं।
– किसान चुप-चाप घर लौट आया। उसने दुसरे दिन अपनी पत्नी से कहा- लडके को आज खाने में हलवा-पुडी देना।
लडका दुसरे दिन खाना लेकर चला। उसने उसी पेड के नीचे जाकर डिब्बे को खोलकर देखा। उसमें हलवा-पूडी देखकर खुश हुआ। उसने भर –पेट हलवा- रोटी खाई। फिर पेड से उसी प्रकार पूछा- पेड भाई, क्या आज भी काम करना चाहिए?
यह डिब्बे से पुच्छो- पेड की तरफ से लडके ने कहा- हाँ आज आराम नही खेत पर काम करना चाहिए।–डिब्बे की ओर से लडके ने कहा।
लडका पुरी लगन और परिश्रम से खेत पर कटाई मे जुट गया उस दिन उसने खेत पर काफी काम किया।
-अरे वाह! दो दिन का काम तुमने एक ही दिन में कर डाला।– किसान ने शाम को घर आकर लडके से खुश होकर कहा।
-क्यों डिब्बे भाई, यह मालिक साहब क्या कह रहे है? –लडके ने खाली डिब्बे की ओर देखते हुए कहा।
-ऐसे ही पेट भर बढीया भोजन मिलेगा तो आगे भी ऐसे ही दो दिन का काम एक ही दिन हो सकेगा।– डिब्बे की ओर से लडके ने कहा तो किसान वास्तविकता तो समझ गया ।
अब किसान कंजूसी छोडकर लडके को भरपेट अच्छा भोजन देने के साथ प्यार और दुलार भी देने लगा । लडका भी ईमानदारी और लगन से किसान के प्रति समर्पित भाव से काम-काज देखने लगा। उसने अपनी अकलमंदी से मालिक किसान का ह्रदय बदल दिया