Thu. Dec 12th, 2024

दो छिपकलीयों की कहानी

यह कहानी लंदन की है। वहां पर एक व्यक्ति रहता था। उसका घर पुराना हो गया । उसने सोचा कि मुझे अब अपने घर का नवीनिकरण करना है। और उसने एक हतोड़ा और छिनी उठाई और अपने घर कि दो परत वाली लकड़ी से बनी दिवार को तोड़ना शुरू कर दिया ।

जब वह उस दिवार को तोड़ रहा था। तब उसने देखा कि लकड़ी की दोनो परतो के बीच मे एक छिपकली बैठी है जिसके पैर में किल लगी हुई थी। लेकिन उसे हैरानी तब हुई जब उसने देखा कि वह छिपकली अभी भी जिंदा है। और उसे पता चला कि वह किल उसने दो साल पहले एक तस्वीर को लटकाने के लिए डाली थी। अर्थात् वह छिपकली दो साल से उस कील के नीचे दबी हुई थी।

दो छिपकलीयों की कहानी और अन्य अच्छी हिन्दी कहानीयां
By pixabay.com

अब वह जानना चाहता था कि वह छिपकली दो साल से जिंदा कैसे है। और वह एक दिन तक इंतजार करता है और सिर्फ उस छिपकली को ही देखता रहा। तो कुछ समय बाद एक दुसरी छिपकली आती है।

उस छिपकली के मुह में कुछ खाना दबा हुआ । और वह छिपकली बार बार थोड़ा थोड़ा खाना लाती थी। और उसे देती थी। यह वह रोज करती थी । यह देख उसकी आंखो में आंसू आने लगे । उसने उस छिपकली को वहा से आजाद कर दिया।

मित्रो इस कहानी से दो शिक्षा मिलती है कि पहली यह कि हमे कभी भी जिंदगी में आशा को नही छोडना चाहीए । क्योंकि आशा ही जिंदगी है। अगर उस छिपकली ने जीने की आशा छोड़ दि होती थी तो वह दो साल तक जिंदा नहीं रह पाता ।
और मित्रो दुसरी जरूरी शिक्षा हमे यह मिलती है कि हमे परोपकारी और निस्वार्थि बनना चाहीए। उस छिपकली के पास हाथ भी नहीं थे लेकिन वह दो साल तक बिना किसी स्वार्थ के उसके लिए खाना लाती थी।

लेकिन मित्रो भगवान ने हमें भलाई के लिए हाथ और सोचने के लिए एक विस्तृत दिमाग दिया है। लेकिन हम सिर्फ धन के पीछे भागते रहते है। और जब किसी की मदद भी करते है तो उसमे अपना स्वार्थ को ढुंढते है। आज बिना स्वार्थ के कोई भी भलाई नहीं करता है ।
इसलिए मित्रो भगवान ने हमे अगर मदद के लिए सक्षम बनाया है तो निस्वार्थ मदद करे।

दण्ड का बदला

यह कहानी वाराणसी के राजा के पुत्र राजकुमार की है। राकुमार की उम्र शिक्षा के योग्य होने लगी थी। इसलिए राजा ने उन्हे एक तक्षशिला में भेजा ताकि वे वहां से कुछ सिख कर यहां पर आये। और राज गद्दी को सम्भाले। राजकुमार कुछ ही दिनों में तक्षशिला पहुंच गये।

तक्षशिला का माहौल बहुत ही अच्छा था और उनके गुरू की शिक्षा भी। सभी गुरू की हर बात को अच्छे से मानते थे। राजकुमार भी बहुत अच्छे से उनकी हर बात को मानते थे। लेकिन वह एक राजकुमार था। और यह बात उसे हमेशा याद रहती थी और उसी के कारण वह अन्य शिष्य से अलग रहता था। वह हमेशा अभिमान से भरा रहता था।

गूरू जी हमेशा की तरह सुबह विचरण के लिए निकलते थे। और उन्ही के पीछे पीछे उनके शिष्य भी आते रहते थे। गुरू जी के रास्त में एक बुढी मां की कुटिया आती थी। वह एकेल रहती थी। उन्हे पता है कि गुरु सालो से इसी रास्त से जाते है। तो वह हमेश हाथ जोड़कर खड़ी रहती थी।

एक दिन भी ऐसा ही हुआ। और पीछे उनके शिष्य आ रहे थे। उनमें से राजकुमार भी उनके साथ ही थे। उन्होने कुटिया के सामने तील देखे। जो बुढि मां सुखाने के लिए रखे थे। बुढि मां हाथ जोड़कर घऱ के अंदर चली जाती थी।

Read more:

दादी का कमरा और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां

डाकिये की कहानी और अन्य कहानीयां | bachhon ki kahaniyan

दादी की कहानी – बीमार घोड़ा | latest story in hindi

राजकुमार ने अभिमान के कारण वहां से तिल उठा लिए और उसे अपने मुह में डालकर खा भी लिए थे। यह सब बुढ़ि मां खिड़की से देख लिया था। लेकिन उसने कुछ भी नहीं कहा।

अगले दिन भी वहीं हुआ गुरूजी आगे और शिष्य पीछे। लेकिन बुढ़ी मां जैसे ही अन्दर जाती राजकुमार दौड़कर आते और तिले से अपनी मुठी को भर लेते थे।

बुढ़ि मां को तिल की कोई चिंता नहीं थी।लेकिन बुढि मां को चिंता इस बात की थी कि यह बच्चा चोरी करना सिख रहा है। औऱ इसे जल्दी से रोकना होगा अन्यथा वह बच्चा भविष्यम में भी वही बुरा कर्म करेगा।

अगले दिन फिर गुरुजी वहां पर आए। और बुढ़िया हमेशा कि तरह अन्दर चली गयी तभी राजकुमार दौड़ते हुए वहां पर आ और तिल से अपनी मुट्ठी भर ली। उसके दौड़ते हुए अपनी लाइन में खड़ा हो गया।

दो छिपकलीयों की कहानी और अन्य अच्छी हिन्दी कहानीयां
By pixabay.com

बुढ़ि मां वहां पर आती है। और राजकुमार को उसी समय पकड़ लेती है और उसे जोर से फटकार भी लगाती है। गुरूजी ने पीछे मुड़कर देखा और उन्हे पूरी बात समझ भी आ गयी थी।

उन्होने राजकुमार को दण्ड के रूप में लकड़ी की छड़ी से पीटा और कहा कि वे आगे से ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे। राजकुमार को यह दण्ड हमेशा याद रहा और उसने अपनी जिन्दगी में कभी ऐसी गलती को फिर नहीं दौहराया ।क्योंकि उन्हे पता था कि गुरूजी को जब बात का पता चलेगा तो फिर से मेरी इज्जत खराब होगी। और फिर तो एक राजकुमार हूं।

इस राजकुमार की शिक्षा समाप्त हो जाती है। और राजकुमार कुछ समय बाद वाराणसी लौट आते है। राजकुमार का बहुत ही अच्छा व्यवहार होता है। सभी लोग उन्हे पसन्द भी करने लग जाते है। और उसके बाद राजा ने अपने राजकुमार को राजा की गद्दी दे दी। राजकुमार ने राजा बनकर भी राज्य की प्रजा को पूरी तरिके सारे सुख प्रदान किये।

लेकिन राजकुमार को हर सुबह उठते समय उसी दण्ड की बात याद आती थी। उसने सोचा कि गुरू जी ने एक राजा पर हाथ कैसे उठाया, उन्हे सजा मिलनी चाहिए। राजकुमार ने अपने दुत्त से आचार्य को महल लाने के लिए कहा।

अगले दिन आचार्य राज्यसभा में खड़े हो जाते है। राजकुमार उसी दण्ड का जिकर करते है और आचार्य को जैल में बंद करने का आदेश देते है। पूरी सभा दंग रह जाती है और सभी यही कहने लगते है कि आचार्य की शिक्षा का ऋण इस प्रकार से चुकाया जाएगा।

प्रजा का असंतोष देखकर राजकुमार ने अपने मंत्री से सलाह ली कि उन्होने बिल्कुल सही किया है न।

मंत्री- मंत्री मोन रहता है।

राजा- मंत्री जी, हमे अपने प्रश्न का उतर दे।

मंत्री- राजा जी, किसी प्रसिद्ध राजा के लिए यह फैसला सही नही है।

राजा- क्यों, जबकि उन्होने आश्रम में मुझे एक लकड़ी से सभी के सामने पीटा था। क्या उनको राजा पर हाथ उठाने का दण्ड नहीं मिलना चाहिए।

मंत्री- लेकिन राजा जी! अगर उस दिन अगर आपको आचार्य ने दण्ड नही दिया होता तो आप आज भी चोरी ही करते शायद। और आपके अंदर कुछ और भी बुरे कर्म आ सकते थे। और उन बुरे कर्मो के कारण अपनी प्रजा का दिल भी जीत नहीं पात। इसके बाद कभी राजा ही नहीं बाते ।

इसलिए महाराज उस दण्ड के कारण आपका जीवन एक राजा का जीवन बन गया। और इस कारण आचार्य को सजा के स्थान पर सम्मान मिलना चाहिए।
राजा- मंत्री जी! आप ठिक कह रहे है। लेकिन अब हम क्या करे।

मंत्री- महाराज उन्हे आपके आदेश से मुक्त करे और उन्हे समान के साथ राजपुरोहित की गद्दी पर बैठाए ताकि आपको समय समय पर ऐसे गुरू का मार्गदर्शन आगे भी मिलता रहे।

इससे आप पूरी प्रजा में आपका समान और भी ज्यादा बढ जाएगा।

⇒ तो बच्चो कैसी लगी कहानी। याद रखना कभी भी आपको स्कुल या परिवार में दण्ड मिलता है तो उस दण्ड से सिखने की कोशिश करना न कि उस दण्ड के बदले के बार में सोचना।

नानी की कहानी

चलो बच्चो आज तुम्हारी नानी तुम्हे एक कहानी सुनाएगी। ध्यान से सुनना

एक जादुगर था। उसके हाथ की सफाई इतनी ज्यादा अच्छी थी कि किसी भी चीज को गायब करना या पा लेना उसके बाएं हाथ का खेल था।

लोग दूर दूर से उसके जादूं के करतब देखने आते थे और प्रशंसा करते थे।

दो छिपकलीयों की कहानी और अन्य अच्छी हिन्दी कहानीयां

एक बार एक युवक ने जादुगर से बोला- मैं भी जादू का खेल सीखना चाहता हूं।

जादूगर ने युवक से पूंछ- तुम जादू क्यों सिखना चाहते हो?

युवक बोला- मैं जादु से अपनी इच्छानुसार वस्तुएं पाना चाहता हूं।

जादूगर ने युवक को समझाया कि यह सब वस्तुएं तुम आवश्यकता अनुसार मेहनत करके भी प्राप्त कर सकते हो।

युवक नहीं माना और बोला- मैं यह सब जादु से पाकर लोगों को आश्चर्यचकित करना चाहता हूं।

युवक की जिद पर जादूगर ने कहा- ठीक है मैं तुम्हे एक गुर (मंत्र) देता हूं। जो तुम्हे यहीं बैठ कर याद करना होगा जब तक मैं जादू दिखा रहा हूं।

जादूगर ने एक कागज पर गुर लिखा और युवक को देकर जादू दिखाना शूरू कर दिया।

उसका जादू का खेल इतना आकर्षक था कि लोग बार-बार तालियां बजा कर उसका उत्साहवर्द्धन कर रहे थे. जादूगर ने 30 मिनट में ही अपना खेल समाप्त कर दिया।

खेल समाप्त होते ही जादूगर ने युवक से वह कागज वापस लेकर मंत्र सुनाने को कहा। युवक मंत्र सुनाने में असफल रहता है।

जादूगर ने पूंछा- ‘तुम्हें गुर याद क्यों नही हुआ।‘

युवक बोला- आपका खेल इतना रोचक था कि मेरा ध्यान बार-बार उसकी तरफ खींचा जा रहा था। मैं चाहकर भी याद नहीं कर पाया।

जादूगर बोला- जादू सीखने में तो इससे भी ज्यादा बाधाएं आयेंगी।

जादूगर ने आगे कहा- जब तुम अपने मन को वश में नहीं कर सकते तो दूसरी वस्तुओं को अपने वश में कैसे करोगे। सच तो यह है, कि मैं जादू जानने के बाद भी अपनी इच्छा से कुछ भी वश में नहीं कर सकता। बल्कि जादू के माध्यम से रोजी-रोटी कमाता हूं। जिन्दगी को जादू या सपनों के साथ मत जोड़ो, परिश्रम करो और यथार्थ में जिओ और हकीकत में फर्क होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *