आज हम Ahilya bai holkar story (in Hindi) के बारे में जानेंगे। गुगल पर अहिल्या बाई की कहानी के बारे में quires आ रही है। क्योंकि अहिल्या बाई का जीवन एक यादगार जीवन हैं। जिन्हे उनके कर्मों के कारण संत समझा जाता है।
अहिल्या बाई नारी का एक शिक्षाप्रद स्वरूप है। वह एक साधारण लड़की होने के बावजुद सभी नारियों के लिए मार्गदर्शक बन चुकी है। भारत के प्रधानमंत्री पंडित ज्वाहरलाल नेहरू ने उनके सभी अच्छों कर्मों को देखा है। इसलिए वे अल्याबाई को एक सच्चे संत के रूप में मानते थे। सच में उनका जीवन बहुत उच्च था।
आज इस आर्टिकल में अहिल्या बाई की कहानी के बारे जानने की कोशिश करेंगे।
Punyashlok Ahilyabai story के एक्टरस और कास्ट
- आदिती जाल्तरे : आहिल्या होल्कर के रुप में भुमिका अदा की।
- राजेश श्रिंगारपुरे : मल्हार राव होल्कर की भुमिका निभाई, जो आहिल्या बाई के ससुर थे। इनकी चार पत्नीयां थी। जिनका नाम गोतमा बाई, बाना बाई, द्वारका बाई और हर्कु बाई साहिब होल्कर था।
- स्नेहलता वासेकर : मल्हार राव की पत्नी की भुमिका ।
- क्रिश चौहान : खांडेराव होल्कर की भुमिका निभाई, जो आहिल्या बाई के पति थे।
- श्रिजना शर्ज : हर्कु बाई साहेब होल्कर की भुमिका निभाई है। इसके अलावा श्रद्धा नालिंदे, सुखडा खांडकेकर, समीर देशपाण्डे, सुल्क्षणा जोग्लेकर, भाग्यश्री, आर्यन प्रीत, जेम्स नेवेध्या, वर्दा पाटील, हरशीत केशरवानी आदि ने अच्छी भूमिका अदा की है।
Ahilya bai holkar story के बारे में
महान शासक अहिल्याबाई होल्कर का जन्म (31 मई, 1725) अहमदनगर जिले के चौंदी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मनकोजी शिंदे था, जो चौंदी गांव (महाराष्ट्र) के पाटील ते। हालांकि उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी।
वे एक निर्धन परिवार की तरह एक सामान्य जीवन बिता रहे थे। उनका जीवन भी कई संर्घषों के साथ चलता था। अहिल्या बाई ने अपनी जिंदगी में कभी स्कुल नहीं देखी थी। उन्हे उनके पिता ही पढाते और लिखाते थे। हालांकि उस समय नारीयों को शिक्षा-दिक्षा नहीं दी जाती थी।
इंदौर में अहिल्याबाई ने तीस सालों तक व्यवस्थित औऱ सुशासन किया। जिसके कारण वह पूरी जिंदगी के बाद भी लोगों के बीच सम्मननीय है। और आज उन्हे संत के रूप में पुजा जाता है।
अहिल्या बाई की किस्मत का सिक्का
अहिल्या बाई की किश्मत का सिक्का भगवान ने सोने का बनाया था। इसी कारण उनकी शादी एक राजा के साथ हो जाती है। यह कहानी कुछ इस प्रकार है-
एक दिन मालवा के राजा मल्हार राव होल्कर पुणे जा रहे थे। बीच में अहिल्याबाई का गांव आता था। वे वहां कुछ समय के लिये रूके थे। अहिल्या बाई नियमित रूप से रोजाना सुबह शिव मंदिर जाती थी। और गरिबों को खाना खिलाकर उनकी मदद करती थी।
उसी दिन की बात है जब वह सहेली के साथ लौटती हैं। तो मल्हार राव की नजर उन पर पड़ती है। उन्हे अहिल्याबाई का दया और मानवता का भाव अत्यंत पसंद आता है। जिसकी वजह से वे अहिल्या बाई की शादि अपने बेटे खांडेराव के साथ तय करते है। अहिल्या बाई के पिता ऊंचे परिवार के लिए राजी हो जाते हैं। इस तरह 12 वर्ष की आयु में उनकी शादी हो जाती है।
अहिल्या बाई ने हमेशा साधारण जीवन ही जिया। भले ही उसने बड़े खानदान में रहना शूरू कर दिया था। लेकिन अहिल्या बाई की जंदगी में एक के बाद एक दुख आये। और जिदंगी एक संघर्ष बन गया।
किस्मत का सिक्का फिर पलटा (संघर्ष का जीवन)
1754 में कुंभार युद्ध के दौरान अहिल्याबाई के पति खांडेराव को तोप का गोला लगने से उनकी मृत्यू हो गयी। उस समय अहिल्या बाई दुख के कारण पूरी तरह से टूट चुकी थी। लेकिन अहिल्याबाई के ससूर मल्हार राव ने उसे उठने की हिम्मत दी।
अहिल्याबाई के पास दो बड़ी जिम्मेदारियां थी। अहिल्याबाई के दो बच्चा और बच्ची थे। पुत्र का नाम भालेराव था तथा पुत्री का नाम मुक्ताबाई था। वह अपने बच्चों को अच्छी देखभाल देने लगती है। दूसरी ओर मल्हार राव के साथ सैन्य मामलों में भी काफी प्रभावी रूची दिखाई।
लेकिन दुर्भाग्य का समय फिर आया। मतलब कुछ वर्ष (सन् 1766 में) बाद ससुर (मल्हार राव) का भी देहांत हो गया। मल्हार राव मल्हार के राजा और अहिल्या की हिम्मत थे। उनकी मृत्यू के अहिल्या बाई अकेली हो गयी थी।
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मल्हार राज्य की सुरक्षा और देखभाल के लिए अहिल्या के बेटे भालेराव को गद्दी दी गयी। लेकिन अहिल्याबाई का बुरा समय अभी भी खत्म नहीं हुआ था। 1767 में उनके बेटे की भी मृत्यू हो गयी। अब अहिल्या ने अपने पति, ससुर और बेटे को खो दिया था। उसके पास कुछ भी नहीं बचा था।
अहिल्या बाई ने शासन संभाला
ऐसी स्थिति में कोई अन्य स्त्री खुद को कभी संभाल नहीं पाती लेकिन अहिल्याबाई ने खुद को संभाला। और राज्य के हित के लिए पेशवा के समक्ष एक संदेश भिजवाया कि मल्हार के शासन की बागडोर अब वह स्वयं सभालेगी।
पेशवा ने उनकी अर्जी मंजुर कर दी। इसके बाद मल्हार राव के दत्तक पुत्र ‘तुको जी राव’ को सेनापति बनाया गया। अहिल्या बाई ने मल्हार राज्य की सभी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे से निभाना शूरू कर दिया।
अहिल्याबाई को बुद्धिमान, तेज सोच और संस्कृत विद्वान के रूप में जाना जाता है। क्योंकि उन्होंने अपने राज्य के विकास को बहुत तेजी के साथ बढ़ाया था।
युद्ध क्षैत्र में-
अहिल्या बाई एक साहसी योद्धा थी और साथ एक बेहतरीन तीरंदाज भी थी। वह हाथी पर चढ़कर कुशलता से युद्ध कर सकती थी। उन्होने अपने राज की निरंतर सुरक्षा की। और एक सच्चे योद्धा की तरह युद्ध का नेतृत्व भी किया।
अहिल्या महल-
रानी ने अपनी राज्य की राजधानी महेश्वर तक ले गई। और वहां पर एक विशाल और सुन्दर अहिल्या महल का निर्माण भी करवाया। यह महल नर्मदा नदी के नदजीक था।
नारी हौंसले को बढ़ाया-
रानी ने हमेशा नारी के हौसले को बढ़ाया। और उनके साथ खड़ी रहती थी। अहिल्या बाई ने विधवा महिलाओं को अपने पति की संपति को हासिल करने और बेटे को गोद लेने का अधिकार दिया। इसके अलावा अहिल्या ने नारी सेना भी बनाई और उसका एक अच्छा नेतृत्व भी किया।
समृद्ध गढ़ का निर्माण-
रानी ने अपने राज्य को साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में विकसित गढ़ बना दिया था।
व्यवस्थित विकास-
Ahilya bai holkar ने तीक्ष्ण बुद्धि के साथ राज्य का विकास किया। वह हर दिन प्रजा के समस्या को सुनती थी। और उनको हल भी करती थी। जैसे- इंदौर में रानी ने मालवा किले से सभी बड़ी सड़को पर मंदिर और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। और राहगीरों के लिए कुएं और विश्रामघरों का भी निर्माण करवाया।
बेघर और गरीब लोगो की जरूरतों को पहले पूरा किया गया। इस तरह अहिल्या बाई सभी समाज के वर्गों में अत्यंत सम्मानीय थी। और इसी वजह से जवाहर लाल नेहरू भी उनकी मौत के बाद उन्हे संत के रूप में याद करते थे। और आज की इंदौर में Ahilya bai को संत के रूप में पुजा जाता है।
अहिल्या बाई ने लगभग सभी बड़े मंदिरो और तीर्थस्थलों पर धन खर्च किया। हिमालय से लेकर भारत के दक्षिण भाग तक के सभी जगह पर खुब खर्च किया।
उपलब्धियां-
रानी ने इंदौर को खुबसुरत शहर में बदल दिया। मालवा से निकलने वाली बड़ी – छोटी सड़कों को बनवायां। साथ ही बहुत सरी धर्मशालाएं, मंदिर, विश्रामघर, कुएं और तालाब आदि। इसके अलावा हिमालय से लेकर दक्षिण भारत पर विशाल धन खर्च किया। जैसे- सोमनाथ, अयोध्या, द्वारका, काशी, हरिद्वार, कांची, बद्रीनारायण, मथुरा, जगन्नाथपुरी और रामेश्वर आदि।
महान और चमत्कारी शासन की समाप्ति
अहिल्या बाई ने 1 दिसंबर 1767 को शासन संभाला था और 13 अगस्त 1775 को यह चमत्कारी शासन खत्म हो गया। क्योंकि 1775 में Ahilya bai की कहानी समाप्त (मृत्यू) हो जाती है। उनके महान कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने अहिल्या बाई की याद में 25 अगस्त 1996 को एक डाक टिकट जारी करवाया था।
इसके अलावा इंदौर के नागरिकों ने 1996 को अहिल्या बाई के असाधारण कृतित्व के लिए पुरस्कार स्थापित किया।
अंतिम शब्द
Ahilya bai holkar story (in hindi) बहुत ही ज्यादा रोचक और प्रेरणादायक है। अहिल्या बाई की जिंदगी से जीवन जीने का तरिका मिलता है। सच में अहिल्या बाई का जीवन चमत्कार की तरह था। और वह सच में संत के योग हैं।