Sun. Dec 8th, 2024

आपने खरगोश और कच्छुए की कहानी (The Complete Story of the Rabbit and the Tortoise) जरूरी सुनी होगी। शायद यह कहानी आपको आपकी दादी या नानी ने जरूर सुनाई होगी। लेकिन यहां पर आपको खरगोश और कच्छुए की पूरी कहानी पढ़ पाएंगी। क्योंकि कच्छुए की जीत के बाद भी फिर से रैस होती है। और उस रैस में क्या होता है। वह आप कहानी को पढ़कर पता कर सकते है।

लेकिन यह कहानी बहुत ही ज्यादा मजेदार होने वाली है। इसलिए कहानी को अंत तक पढ़े।

खरगोश और कच्छुए की पूरी कहानी (The Complete Story of the Rabbit and the Tortoise)

खरगोश कहता है कि इस बार फिर से दोड़ लगाते है । और इस बार देखते है कि कौन जीतता है? दूसरी बार फिर दौड़ होती है। लेकिन इस बार खरगोश नींद नहीं लेता है। और वह तेजी से दौड़कर दौड़ को जीत लेता है। इस बार कछुआ कहता है कि मेरे साथ छल हुआ है। लेकिन कल एक बार फिर से दौड़ लगायेंगे। लेकिन रास्ते का चुनाव में करूंगा। खरगोश ने कहा ‘ठिक है’ । कल फिर मिलेंगा।

खरगोश और कच्छुए की पूरी कहानी (story of rabbit and tortoise)
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यह कहानी खरगोश और कछुए की है जो जंगल में रहते थे। एक दिन खरगोश और कछुए के बीच दौड़ की प्रतियोगिता होती है। खरगोश कहता है कि मैं तेज दोड़ता हूं और कछुआ कहता है कि मैं तेज दोड़ता हूं। इसी कारण दौड़ने की प्रतियोगिता होती है। दौड़ के शुरू होने पर खरगोश तेजी से दोड़ता है। लेकिन कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ आता है।

खरगोश दौड़ के समाप्त की लाइन के पास पहुंच जाता है। लेकिन वह सोचता है कि कछुआ तो बहुत ही धीरे चलता है और उसे यहां तक पहुंचने में बहुत समय लग जाएगा। खरगोश यह सोचकर एक पेड़ के नीचे सो जाता है। लेकिन कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ समाप्ति लाइन के पास पहुंच जाता है। और उस दौड़ को जीत लेता है। बहुत समय बाद खरगोश की आंख खुल जाती है। और वह तेजी से दौड़ता है।

लेकिन वह देखता है कि कछुआ उससे पहले वहां पर पहुंच गया था। कछुआ कहता है कि मैं यह दौड़ जीत गया। लेकिन खरगोश कहता है कि नहीं, तुम नहीं जीते हो। अगर मैं नहीं सोता तो तुम कभी भी नहीं जीत पाते। इसलिए इस दौड़ का विजेता मैं हूं।

दूसरी और तीसरी रेस

अगले दिन खरगोश और कछुआ दोनो फिर से दौड़ लगाते है। खरगोश इस बार भी बिना नींद लिये तेजी से दौड़ने लगता है। लेकिन कछुए के इस रास्ते के बीच में एक नदी आ जाती है। खरगोश वहीं पर रूक जाता है । और पीछे धीरे-धीरे कछुआ भी आ जाता है। और वह आसानी से पानी के अंदर तैरने लगता है। खरगोश कहता है कि तुमने मेरे साथ धौका किया है।

खरगोश और कच्छुए की पूरी कहानी (story of rabbit and tortoise)

तुझे पता है कि मैं पानी में नहीं तैर सकता हूं। तब कछुआ कहता है कि दोस्त तुमने भी तो मेरे साथ धौका किया है। तुम जानते हो कि भगवान ने लम्बी टांगे तेज दौड़ने के लिए दी है। और मुझे भगवान ने पानी में तैरने का गुण दिया है। इसलिए दोस्त भगवान ने जो कुछ भी दिया है उस पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। और इस दौड़ को इस बार हम दोनो जीतेंगे। मतलब अभी तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। और मैं तुम्हे पानी के उस पार ले जाउंगा। और जमीन पर तुम मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाना। इस तरह हम दोनो ही जीत जायेंगे।

इस बार दोनो हीं रैस जीत जाते है। और दोनो ही खुश भी हो जाते है। इस तरह खरगोश और कच्छुए (The Complete Story of the Rabbit and the Tortoise) की कहानी का अंत हो जाता है।

बच्चो भगवान ने जो भी दिया है। उस कला पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। और जिंदगी की सभी दौड़ को साथ में मिलकर जीतना चाहिए।

कोयल और बगुला

कोयल और बगुला की कहानी (story for kids in hindi)

फागुन का महिना था।
बसन्त ऋतु थी। आम के एक पेड़ पर बैठकर सुबह-सुबह कोयल कुहू.. कुहू.. गा रही थी। कोयल की मीठी और सुरीली आवाज सुनकर एक बगुला उसके करीब आ पहुँचा। फिर झट बोला-‘कोयल बहन, तुम्हारी आवाज में तो बहुत मिठास है।
तो फिर?
मगर तुम्हारी सूरत तो काली है। भगवान ने सचमुच बड़ी गलती की है। -बगुला बोला।
कैसी गलती? -कोयल उत्सुक हो उठी।

जैसी तुम्हारी सुरत है, आवाज भी वैसी ही होनी चहिए। बगुला ने कहा, ‘देखो, मैं कितना गोरा-चिट्टा हूँ, सफेद झकझक। तम्हारी सुरीली आवाज तो मुझे मिलनी चाहिए।‘
‘बगुला भाई, एक बात कहूँ?’ कोयल बोली।
जरूर कहो।
भगवान ने जो कुछ किया है, ठीक ही किया है। उसने कोई गलती नहीं की है।
‘कैसे नहीं की है?’ कोयल की बात मानने के लिए बगुला एकदम तैयार नहीं था।
जरा सोचो, तुम्हारा रंग उजला है तो तुम्हें उसका कितना घमंड है। कोयल समझाकर बोली, ‘अगर तुम्हारी आवाज भी सुरीली और मीठी होती तो तुम्हारा घमंड क्या और नहीं बढ़ जाता? सदैव याद रखो, धमण्डी की अच्छी आवाज भी भद्दी हो जाती है। उसका अच्छा रूप भी खराब लगने लगता है। अतएव भगवान ने तुम्हें जैसी भी आवाज दी है, ठीक है। खूब सोच-विचार कर दी है, ऐसा समझ लो।‘ कोयल की बोतों में गहरी सच्चाई थी। सुनकर बगुला के मुँह की बोली बंद हो गयी।

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समय का चक्र

एक गांव से एक सुफी संत गुजर रहा था । यह बात वहां के एक सेठ के पास पहुंची तो वह उसी समय दौड़ता हुआ वहां पर पहुंच जाता है। और संत से अपील करता है कि वह उनके घर चले, मैं आपकी सेवा करना चाहता हुं। यह सुनकर संत उनके साथ चले जाते है। जैसे ही वे घर पर पहुंचते है तो सेठाणी उनका खुब स्वागत करती है।

कुछ दिन तक उने अपने घर पर रखते है और उनकी सेवा करते है। जब उनके जाने का वक्त हुआ तो सेठ और उसका परिवार हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है। सेठ कहता है कि मेरा कारोबार और धन – दौलत सब है लेकिन कुछ बेहतर आशीर्वाद दिजिए । ताकि यह कभी भी खत्म न हो पाए। तब संत ने कहा कि मौज में रहीए, यह भी गुजर जायेगा। और यह कह कर संत चले गए । लेकिन बात उन्हे समझ नहीं आ सकी ।

पांच वर्ष बाद फिर वह संत उसी गांव से गुजर रहे थे । और यह खबर उस सेठ के पास पहुंचती है। तो वह तौड़ता हुआ आता है और उन्हे अपने घर ले जाता है। लेकिन इस बार उसकी दशा बहुत ही दयनीय (खराब) थी । घर में खाने के लिए दाने तक नहीं थे । पुरा परिवार रो रहा था । सेठ के पास जो कुछ भी था उसी से उसने संत की सेवा की। और संत को खुश किया ।

अब कुछ समय बाद वह संत जाने लगता है तभी वह सेठ हाथ जोड़कर उनसे मांगता है कि इस बार कृप्या आप हमे अच्छा-सा आशीर्वाद दिजिए । तब वह संत फिर से वही आशीर्वाद देता है कि मौज में रहो, यह भी गुजर जायेगा। तब पत्नी ने बोल ही दिया कि संत जी कुछ तो कोहीए, ऐसा कब तक चलेगा। लेकिन संत फिर उसी तरह चले जाते है उन्होने कोई जवाब नहीं दिया ।

दो साल बाद वह संत फिर उसी गांव में आता है और सेठ दौड़ता हुआ आत है, और उन्हे अपने हवेली ले जाता है। लेकिन इस बार उनके पास सब कुछ था। पहले जैसी सभी सान और शौकत उनके पास फिर आ गये थे । इस बार उनका पुरा परिवार फिर उनके पैरो मे झुक जाता है। और इस बार उस सेठ ने कहा कि मुझे कुछ भी नहीं चाहीए । जो है, हम उसमे ही खुश है। तब संत जाते ही उसे फिर वही आशीर्वाद देते है कि मौज मे रहो, यह भी गुजर जायेगा।
इस बार सेठ को उसका पुरा मतलब समझ आ गया कि हमे हर समय खुश रहना चाहिए क्योंकि यह सुख – दुख तो आते – जाते रहते है। आज है तो कल नहीं रहेगा।

शिक्षा- संकट कैसे भी हो, उनका स्वभाव रेत के टिले की तरह ही होता है। टिले कभी भी हमेशा के लिए नही होता है वे हवा के साथ बदलते रहते है। हमे बस अपने मन को शांत, स्थिर , धौर्यशील बनाना है।

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