एक बूंद की कीमत
“मगलू! आज तुमने हिरण नल खुला छोड़ दिया।“ मगलू हिरण की माँ रोमी हिरणी कह रही थी – तुम नहा चुके तो तुरन्त नल बन्द कर देना चाहिए था। कितना पानी बहकर नाली में चला गया।
मगलू रोज कितना ही पानी बरबाद कर देता। सुबह ब्रुश करता तो पूरी रफ्तार से लगातार नल खुला छोड़ देता। खाना खाकर हाथ धोता तो नल बन्द नहे करता। पानी बेकार बहता रहता।
माँ डांटती रहती, “मगलू तुमसे कितनी बार कहा है कि पानी को बरबाद मत करो, पर तुम हो कि…”
-आपको माँ, क्या फर्क पड़ता है पानी ही तो बहा है, दूध तो नहीं बह गया। – मगलू हिरण बोला।
“तुम्हें खूब पानी मिलता है न, तभी तुम इसकी कीमत नहीं समझते हो। उन लोगों की सोचो जो एक-एक बूंद पानी के लिए तरसते हैं।“ माँ बड़बड़ाती हुई खाना बनाने में लग गई।
दोपहर का समय था। मगलू ने स्नानघर में एक बड़ा-सा टब पानी से भर लिया और ऊपर नल चालू कर दिया। उसमें उछल -कूद करते हुए बह नहाने लगा।
जब काफी देर तक मगलू स्नानघर से बाहर नहीं आया तो उसकी माँ रोमी हिरणी वहाँ पहुँची, “अरे ये क्या? तुमने फिर कितना पानी बरबाद कर दिया। देखो, कितना पानी बेकार में बहकर जा रहा है।“ कहते हुए रोमी ने नल बंद कर दिया।
-माँ गर्मी लगती है। पानी में खेलने में मजा आता है।– मगलू ने कहा।
-देखो बेटा, तुम्हें उतना पानी खर्च करना चाहिए जितना जरूरी हो। जितना पानी बचाओगे उतना खेतों में दिया जा सकेगा व फसल भी अच्छी होगी। कारखानों में भी पानी जरूरी होता है। पूरा पानी नहीं मिलने पर हमारे कई कारखाने बंद पडे हैं।
-पर माँ, नलों में पानी हमारे लिए ही तो आता है।– मगलू ने कहा।
-तुम्हें यहाँ खूब पानी मिल रहा है न इसीलीए तुम्हें उने इलाकों की खबर नहीं जहाँ हमारे जैसे कई प्राणियों को पीने के पानी के लिए दूर-दूर जाना पड़ता है।– रोमी हिरणी ने समझाने का प्रयास किया।
-लेकिन माँ, पिताजी पानी का बिल तो भरते है। फिर जब हम पैसे देकर पानी खरिदते हैं तो क्यों न उससे खेलें?
माँ समझ गई कि जब तक यह खुद पानी के लिए तरसेगा नहीं इसकी समझ में पानी की कीमत नहीं आएगी। वह चुप हो गई और कुछ सोचने लगी। उनके दिमाग में एक ‘आइडिया’ आ गया।
रविवार को छुट्टी का दिन था। रोमी हिरणी ने कहा- मगलू तुम्हारे चंचल चाचा ने पड़ोसी के जंगल में कॉलेज बनाने के लिए जो जमीने खरिदी है न, उसे देखने चलना ह। मैं खाना बनाकर पैक कर लेती हूँ। पापा भी हमारे साथ चलेंगे। चंचल हिरण के दोनों बच्चे भी हमारे साथ चल रहे हैं। कॉलेज की जमीन भी देख आएंगे और पिकनिक भी हो जाएगी। वहाँ से शाम तक लौट आएंगे।
-वाह मम्मी, तब तो बड़ा मजा आएगा- मगलू खुश होते हुए बोला।
ठीक समय पर चंचल चाचा अपनी जीप लेकर आ गये। सब तैयार थे ही, जीप में सवार हो गये।
आठ-दस किलोमीटर चलने के बाद एक सुनसान जगह पर पहुँच गये। सब बहुत खुश थे।
-क्यों भाई साहब, कॉलेज बनाने के लिए यह जगह ठिक रहेगी न?
चंचल चाचा ने पूछा तो मगलू के पिताजी बोले- हाँ, बहुत बढ़िया है आबादी से दूर भी है। जंगल के जानवरों को ऊँची पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा।
-अच्छा, तो भाई साहब, आप लोग पिकनिक मनाइए। मुझे जरा शहर में काम है। बच्चे आपके साथ ही हैं। कितने बजे तक लेने आ जाऊँ, आप लोगों को?
-हम तो खेलने का सामान लाए हैं। आप तो देर से आना। शाम के पांच बजे तक। – बच्चों ने कहा।
वहाँ दूर-दूर तक केवल एक ही छायादार बरगद का पेड़ था। उसी के नीचे रोमी हिरणी ने दरी बिछा दी। सब वहाँ बैठ गये।
कुछ ही देर में बच्चे बैडमिंटन खेलने चले गये। थोड़ी देर बाद मगलू हिरण माँ के पास आया और बोला- माँ, पानी दो, प्यास लगी है। रोमी हिरणी ने साथ लाई पानी की बोतल मगलू को पकड़ा दी। कुछ ही देर में मगलू व चाचाजी के बच्चों ने मिलकर साथ में लाई बोतल खाली कर दी।
दोपहर होते-होते बच्चों को भूख लग गई। रोमी हिरणी ने सबके लिए खाना लगा दिया। खाने में सबको बहुत आनन्द आया। खाने के बाद बच्चों ने पानी मांगा। तो, माँ ने बताया- पानी तो उसी बोतल में था। वह तो तुमने खत्म कर दिया।
मगलू ने चारों तरफ देखा। दूर तक हैण्डपम्प दिखाई दिया। तीनों बच्चे खाली बोतल लेकर उसकी ओर दौड़ पड़े। धूपर में दौड़कर हैण्डपम्प पर पहुँचते- पहुँचते तीनों पसीने से तर हो गये। अब उन्हें और भी जोर से प्यास लगने लग गई। पर जब उन्होंने हत्था पकड़कर हैण्डपम्प चलाना चाहा तो वह एकदम से नीचे गिर गया। पानी निकला ही नहीं।
-यह हैण्डपम्प तो खराब है।– मगलू बोला। दूर-दूर तक दुसरा हैण्डपम्प भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहाँ से वापस बरगद के पेड़ तक आते-आते तो तीनों का बुरा हाल हो गाय। सबसे छोटा हिरण रोने भी लगा।
-कोई बात नहीं प्यास लगी है तो संतरे की फांके चूस लो। -रोमी हिरणी ने टोकरी से संतरा निकालकर देते हुए कहा।
संतरा खाकर मगलू बोला- इससे कुछ नहीं हुआ माँ, मुझे तो पानी ही चाहिए। प्यास के मारे जान निकली जा रही है।– वह रुआंसा हो उठा।
-बेटे, अब मैं यहाँ पानी कहाँ से लाऊँ? भयंकर गर्मी पड़ रही है और अंकल भी तो शाम तक लेने आएंगे। कुछ देर की ही तो बात है शाम को घर जाकर खूब पानी पी लेना।– रोमी हिरणी ने कहा।
तीन बजते-बजते बच्चों का बुरा हाल हो गया।
-बहुत गर्मी है, माँ! चाचा कब आएंगे। प्यास के मारे गला सूख रहा है।
-तुम्हीं ने पांच बजे तक आने को कहा था- पिताजी बोले।
-ओह माँ, अब तो रहा ही नहीं जात। कहीं से एक घूंट पानी भी नहीं मिल सकता क्या?- मगलू खाली बोतल को टटोलते हुए बोला।
-लगता है अब तुम्हें पानी की एक बुंद की कीमत का अंदाजा लग चुका है। एक-एक घूंट पानी के लिए जानवर कैसे तरसते हैं, तड़फते हैं। इसका अनुभव तुम्हें हो चुका है। चिन्ता न करो तुम्हारे चाचा आते ही होंगे। मैंने उन्हें तीन-सवा तीन बजे तक आने को कह दिया था क्योंकि मैं जाती थी कि इने समय में ही तुम्हें पानी की कीमत अच्छी तरह पत चल जायेगी।– माँ ने कहा।
तभी उन्हें दूर एक जीप आती दिखाई दी। बच्चे खुशी से उछल पड़े। चंचल भाई, हम जिस काम के लिए आये थे, वह हो चुक है। अब बच्चों को पानी पिला दो।– मगलू के पिताजी ने कहा।
चंचल चाचा हिरण ने मुस्कराते हुए जीप में रखी पानी की बोतलें बच्चों को पकड़ा दीं। बच्चों ने ठंडे पानी की बोतले लीं औऱ गटागट ढेर सारा पानी पी लिया।
“अब पता चला माँ, जिस पानी को हम बुरी तरह बर्बाद करते हैं उसकी एक-एक बूंद कितनी कीमती है। अब हम बिल्कुल भी पानी बरबाद नहीं करेंगे।
सब बच्चों ने वादा किया तथा सब अपने घर की ओर वापस लौट पड़े।