कहानी के बारे में:
आज की पोस्ट में बेहद ही शिक्षाप्रद काहनीयों (new moral stories) को लिखा गया है। और मुझे पूरी उमीद है कि आपको यह कहानी जरूर पसन्द आयेगी। इसे अपने परिवार के साथ जरूर पढे।
लगान (Short story in hindi for kids):
काफी समय पहले की बात है। राजपुताना क्षेत्र में मान सिंह नाम का एक जागीरदार था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम शेरसिंह था। शेरसिंह बड़ा होनहार और दयालु स्वभाव का था।
एक समय कि बात है जब राजपुताना में बरसात नहीं होती है। और पूरा क्षेत्र अकाल में पड़ जाता है। सभी लोग इस समस्या से परेशान थे। और साथ में उन्होने काफी लगान ले रखा था। इसलिए वे समय पर जागिरदार के लगान को चुका नहीं पा रहे थे।
जागीरदार के कर्मचारियों जबरदस्ती किसानों के घर में घुसकर जो भी मिला उसे उठाकर ले गये। और किसानों को पकड़कर जागीरदार के सामन पेश किया।
शेरसिंह ने देखा कि उन गरिब और लाचार किसानों को सताया जा रहा है। उन्हें देखकर उसे दया आई। उसने उनकी मदद करने की सोची।
शेरसिंह अपने पिता जी के पास जाता है और उनसे विनती करता है कि आप किसानों का लगान माफ कर दे। क्योंकि अभी के समय में बरसात नहीं होने के कारण अकाल पड़ गया है। और जब उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है तो वे भला लगाने कैसे चुकाएंगे। इसलिए पिता जी उनके लगान को माफ कर दिजिए।
जागीरदार- बेटा, तुम इन चक्करों में मत पड़ो। अभी तुम्हारे खेलने की उम्र है। चलो जाओ मस्ती और मजा करो। तुम इन किसानों पर दया मत करो। अगर हम उन पर दया करेंगे तो हम क्या खायेंगे।
शेरसिंह- लेकिन पिताजी…
जागीरदार- अब बस! जाओ अपनी घुड़सवारी सिखो।
उसके बाद शेरसिंह वहां से चला जाता है। शेरसिंह को याद आता है कि उसके पिता जागीरदार ने उससे कहा था कि तुम घुड़सवारी अच्छी तरह सीख लोगो तब तुम्हें मुंह-मांगा ईनाम दिया जाएगा। शेरसिंह को लगान माफ करवाने का उपाय सुझता है। और वह दोड़कर अपने घोड़े के पास जाता है।
वह पूरा दिन घुड़सवारी सिखने की कोशिश करता है। लेकिन वह कई बार मुंह के बल गिरता भी है और पूरे शरीर पर चोट भी आती है। ले। लेकिन वह घुड़सवारी सिखना बंद नहीं करता है। और इस तरह शाम हो जाती है। उसकी मां को शेरसिंह की चिन्ता होने लगती है। और जागीरदार को उसे ढुंढने के लिए भेजती है।
जागीरदार आखिर में अपने मैदान में पहुंचता है जहां शेरसिंह पूरी तरह से चोटिल होते हुए भी घुड़सावरी को सिख रहा था. जागीरदार ने उसे रोका और कहा बेटा यह तुम क्या कर रहे हो।
शेरसिंह- पिताजी में आज के आज ही घुड़सवारी सिखना चाहता हूं। ताकि आपसे में एक मुंह-मांगा ईनाम ले सकु।
पिताजी- हां बेटा, तुम मुझसे बेवजह कुछ भी मांग सकते हो। यह सब करने की कोई जरूरत नहीं है।
बेटा- पिताजी, मैं चाहता हूं कि आप किसानों का लगान माफ कर दे। ताकि वे खुसी से रह सके। और वे अपने दिल आपको दुआए दे। न कि पीछे से गालियां।
मैने कई बारे किसानो से आपके बारे में बुरा सुना है। और दादाजी ने कहा था कि अगर हम किसी का भला करते है तो भगवान अपने खाते में उसे सबसे पहले लिखता है और उसका फल भी हमें जल्दी मिलता है।
लेकिन भगवान हमारे बुरे कर्मों की सजा उसी समय देता है। इसलिए पिताजी हो सके तो भला करे अन्यथा किसी का बुरा तो बिल्कुल न करे। और पिताजी इन पैसों से कई गुना अधिक लोगो का प्यार हमारी जिंदगी में काम आएगा।
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जागीरदार- हां बेटा! तुम सही कह रहे हो। शायद मेरी पैसो की लगन कुछ ज्यादा ही हो गयी है। लेकिन बेटा मैं वादा करता हूं कि आगे जब भी अकाल होगा तब मैं किसानों का लगान माफ कर दूंगा। और मुझे जितना होगा मैं उनकी मदद भी करूंगा।
इस तरह जागीरदार की गांव में इज्जत बन जाती है। और कुछ समय बाद अच्छी बारिस होती है। और किसान मेहनत करके अपना पीछला लगान भी चुका देते है।
चतुराई का फल
एक राजा था। अपने राज्य की प्रजा को खुशहाल रखने के लिए वह प्रयास करता रहता था। वह योग्य और नितिवान मंत्रियों को ही राज्य की सेवा में रखना चाहता था।
एक दिन राजा नें अपने तीन मंत्रियों को राजदरबार में बुलाया। राजा ने तीनों मंत्रियों को आदेश दिया कि वे एक –एक थैला लेकर बगीयें में जाए और वहाँ से अच्छे –अच्छे फल तोड़ कर थैला भर कर वापस आएं। मंत्रियों को राजा का यह आदेश अच्छा न लगा। उनके अहंकार को ठोस पहुँची, वे सोचने लगे कि हम मंत्री हैं, कोई मजदूर नहीं।
राजा का आदेश था, इसलिए मंत्रियों को राजा की बात माननी पड़ी। पहले मंत्री ने सोचा कि चलो अब फल तोड़ना ही है तो अच्छे और स्वादिष्ठ फल तोड़ कर थैला भर लिया जाए।
दूसरे मंत्री ने सोचा कि थैला भरकर फल ले जाना है, तो जो भी कच्चे- पक्के फल मिलते हैं उनको भर लेता हूँ। राजा पूछेगा तो कह दूंगा कि बगीये में फल ही ऐसे थे।
तीसरे मंत्री ने सोचा- कौना इतनी सिरदर्दी ले और उसने थैले को घास- फूस से भर कर उसके ऊपर थोड़े से फल रख लिये और थैला भरकर वापस आ गया।
राजा ने तीनों मंत्रियों को बुलाया और कहा कि तुम तीनों कल सुबह अपने –अपने फल वाले थैलों के साथ राजदरबार में उपस्थित हों।
अगली सुबह तीनों मंत्री राजा के दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने उसके द्वारा राजकार्य में की जाने वाली लापरवाही और गलतियों की सजा सुनाते हुए उन तीनों को एक महीने के लिए शहर से दूर जंगल में बनी जेल में बन्द करवा दिया। साथ ही राजा ने कहा कि जो तुम फलों का थैला भरकर लाये हो, तुम्हें उससे ही एक महीने अपना जीवन निर्वाह करना है। जेल में कोई भी इनसे एक महीने से पहले नहीं मिलेगा।
अब जिस मंत्री ने राजा की बात मानकर अपने थैले में अच्छे और मीठे फल ईमानदारी से भरे थे वह पूरे महिने आराम से अपना जीवन निर्वाह करता रहा।
दूसरा मंत्री जिसने कच्चे- पक्के व सड़े हुए फलों से थैला भरा था। वह कुछ दिनों बाद बीमार पड़ गया। एक महिने बाद जब वह बाहर आया तब वह काफी बीमार पाया गया, जिससे पता चला था कि उसका एक महीने का जीवन कष्टदायक रहा।
तीसरा मंत्री जिसने बगीये से केवल घास-फूस और कुछ फलों से ही थैला भर लिया था, वह सजा सुनने के बाद दंग रह गया। वह जेल में कुछ दिनों तक ही जीवित रह पाया । जब एक महीने बाद उसकी जेल का दरवाजा खोला गया तो वह मंत्री मृत पाया गया।
कहानी की सत्यता जो भी रही हो परन्तु इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम अपने माता- पिता और गुरूजनों की बात ईमानदारी से बिना किसी चालाकी और चतुराई के मान लेते हैं तो जीवन खुशहाल व आरामदायक हो जाता है, नहीं तो दूसरे अथवा तीसरे मंत्री की तरह परेशानियों का सामन् करना पड़ता है।
अंतिम शब्द:
तो मित्रो उमीद है कि आपको यह दोनो कहानीयां (two kahani) पसन्द आयी होगी। और इससे आपकी जींदगी में कुछ बदलाव जरूर आएगा । अगर आप इसे अपने दिल से पढकर इसके बारे में सोचेंगे तो
यह कहानी लिखने का मेरा एक ही उद्देश्य है कि आप अपने बच्चो के साथ बेठकर ऐसी ही अच्छी कहानीयों को पढ़े। और अपने जीवन को किसी अच्छे मोड़ की ओर ले जाए।