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चीकू, मीकू और चुनचुन की कहानी

इस hindi story में, देवल गाँव के बाहर पीपल का एक पेड़ था। पेड़ के पास एक कुआं था। कुआं बहुत पुराना था। वह बहुत गहरा भी था। कुएं में नीचे जहाँ पानी था वहाँ रोशनी बहुत कम थी।
कुएं के गहरे पानीं में चीकू और मीकू नाम के दो मेढ़क रहते थे। वे पानी में टांगें फैलाए तैरते रहते थे। तैरना उन्हें अच्छा लगता था। बैठने की कोई जगह भी तो न थी जिस पर बैठकर कुछ समय वे आपस में गप्पे लगाते। कभी-कभी वे कुएं की दीवार के सहारे लटककर करतब दिखाते। पानी में छलांग लगाना भी उनको खूब अच्छा लगता था।

पानी की सतह से काफी ऊपर कुएं की दीवार में एक कोटर (गड्ढा) था। उसमें चुनचुन नाम की एक चिड़िया रहती थी। चुनचुन ने बाहर से तिनके जमा कर कोटर में एक घोंसला बना लिया था। रोज सुबह वह दाना-दुकान चुगने बाहर चली जाती थी। वहाँ वह दूसरे पक्षियों से चहक-चहककर बातें करती और फिर अपने घोंसले में आकर आराम करती थी।
चुनचुन अक्सर चीकू-मीकू का हालचाल पूछ लिया करती थी। चीकू-मीकू बड़े घमण्डी थे। दोनें में, पानी में छलांग लगाने की होड़ लगी रहती थी। एक बार चुनचुन उनसे दूर-दूर तक लहलहाती फसलों की प्रशंसा करने लगी। उसने उन्हें बताया कि बाहर की दुनिया बहुत बड़ी है। चीकू-मीकू खिलखिलाकर हंस पड़े। उन्हें चुनचुन की बातों पर हँसी आ रही थी। हँसी के बीच मीकू ने एक लम्बी छलांग लगाकर कहा- तुम किस दुनिया की बात कर रही हो, वह मेरी इस छलांग से बड़ी हो तो बताओ?
चुनचुन मुस्कराकर बोली- नहीं, मीकू! यह तो कुछ भी नहीं है। बाहर की दुनिया तो बहुत बड़ी है। मीकू ने इस बात पर और बड़ी छलांग लगाई। वह कुएं की दिवार के पास से उछला और कुएं के बीचो-बीच जा पहुँचा। फिर वह बोला- इससे बड़ी तो नहीं होगी , तुम्हारी दुनिया।
चुनचुन बोली- नहीं मीकू, तुम समझ नहीं रहे हो, वह बहुत बड़ी है।
अब तक चीकू चुप था लेकिन उन दोनों की बातें सुनकर चीकू ने एक जोरदार छलांग लगाई। इस बार वह कुएं की एक दीवार से कूदा और सामने वाली दीवार के पास जा पहुँचा।


अब चीकू-मीकू दोनों एक साथ बोल उठे- इससे बड़ी तो हो ही नहीं सकती तुम्हरी दुनिया। -और वे जोर-जोर से हँसकर चुनचुन का मजाक उड़ाने लगे।
चुनचुन चुप रही। वह भला कर भी क्या सकती थी? बेचारी उन दोनों की हँसी का पात्र बनती रही।
समय बीतता गया। फिर बरसात का मौसम आ गया। नदी-नाले उफनने लगे। एक दिन पानी इतना बरसने लगने लगा कि बाढ़ ही आ गई। बाढ़ का पानी कुएं में भी भरने लगा। कुएं का जल स्तर बढने पर चुनचुन को अपना घोंसला छोड़कर पेड़ पर शरण लेनी पड़ी। बाढ़ का पनी इतना बढ़ता गया कि कुआं भी उस पानी में डूबकर गायब हो गया। चीकू-मीकू सोचने लगे। कुआं कहां गया?
उन्होंने ने पहली बार कुएं से बाहर की दुनिया देखी थी। विशाल आशमान और दूर –दूर तक फैली धरती को देख कर वे हैरान हो गये। उन्हें चुनचुन की बाते सच लगने लगी। दूर तक सूर्य का उजाला उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्हें चुनचुन की आज बहुत याद आने लगी। वे सोचने लगे- हम ठहरे कुएं के मेढक और वह खुले आसमान में उड़ने वाली पक्षी। चुनचुन हमें सच कहती थी कि बाहर दुनिया बहुत बड़ी है।

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चीकू-मीकू ने वहाँ कई घर भी देखे। घर में बच्चे पाठ याद कर रहे थे-‘हमें अपनी सोच विशाल रखनी चाहिए, कुएं का मेढक बनकर नहीं रहना चाहिए।‘
चीकू-मीकू बच्चों की बातें सुनकर झेंप गये। उन्हें आश्चर्य हुआ कि ये बच्चे उनके बारे में कैसे जानते हैं? वे दोनों मुँह छुपाते हुए वे एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। उन दोनों ने निश्चय किया कि घमण्ड अच्छी चीज नहीं है। कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए और अपनी सोच को हमेशा विशाल रखना चाहिए।

दादा जी की कहानी,

by pixabay.com


इस latest story में, पशुओं की बस्ती में एक बकरी अपने बच्चे के साथ रहती थी। उसका नाम था गोलू। वह बहुत शरारती था। औऱ उसे सारा दिन खेलना अच्छा लगता था। एक दिन वह खेलते-खेलते जंगल की ओर निकल गयी।
बकरी ने जब गोलू को घर पर नहीं देखा तो वह बहुत परेशान हो गयी। वह फटाफट जंगल की ओर भागी। बकरी को डर था कि गोलू कहीं घने जंगल में न चला जाए। वहाँ तो हर वक्त ही जंगली जानवर शिकार की तलाश में रहते हैं।
बकरी थोड़ा ही आगे गई तो देखा कि गोलू पेड़ो के झुंड में छिपा हुआ था। अपनी माँ को वहाँ देखकर वह खुशी से उछलने लगा।
गोलू – “माँ, माँ, तुमने मुझे ढूँढ लिया।“
माँ – गोलू, तुम्हें कितनी बार मना किया है, इस तरफ आने से।
तुम समझते क्यों नहीं हो ? किसी दिन तुम खुद भी मुसीबत में फंसोगे और मुझे भी फंसा दोगे।
लेकिन, शरारती गोलू को
चैन कहाँ था? अगले ही दिन वह फिर से माँ की नजर बचाकर घने जंगल की ओर चल पड़ा।
और एक दिन गोलू जैसे ही जंगल में उस दिन उसेक सामने एक भेड़ीया आ गया। भेड़िए ने जैसे ही गोलू को अकेले देखा तो उसके उपर झपट पड़ा।

भेड़िए को यूं अचानक सामने देखकर गोलू घबरा गया। वह मदद के लिए चिल्लाने लगा। लेकिन भेड़िया उस पर झपटने की पूरी तैयारी कर चुका था।
परन्तु, वह अभी झपटने ही वाला था कि अचानक बकरी अपने मित्रों के साथ वहाँ पहुँच गई। एक शिकारी कुत्ता भी उसका मित्र था। वह भी उनके साथ था।
जैसे ही शिकारी कुत्ता जोर से भौंका, भेड़िया डर गया और वहाँ से भाग खड़ा हुआ और गोलू बच गया।
दादा जी –
शिक्षा – बच्चों! हमें हमेशा अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए। क्योंकि वे ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकते हैं।

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