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पोस्ट मैन की kahani:

मित्रो यह कहानी एक पुराने समय के गांव की है । पुराने समय में मोबाइल नही होने पर लोग एक – दूसरे को पत्र लिखा करते थे । यह एक सच्ची घटना है जो एक डाकिये के साथ घटित हूई थी।
डाकिये का काम होता था कि वह हर घर पर जाकर उन्हे चिठी दे और अनपढ लोगो को वह चिठ्ठी पढकर सुनाये । डाकिया रोज सुबह ही निकल जाता था और शाम को घर लौटता था । उस डाकिये का व्यवहार काफी खराब था । वह हर किसी से गलत तरिके से बात करता था और उसके नाक पर हमेशा गुस्सा लगा रहता था ।

एक अनोखा घर

एक दिन डाकिया एक ऐसे घर पर गया जहां वह काफी समय तक घर से बाहर ही खड़ा रहा । वह कहता कि आपकी चिठ्ठी आई है इसे ले जाये और यहाँ पर हस्ताक्षर कर दे । लेकिन अंदर से आवाज आती कि मैं अभी आ रही हूं आप थोडे समय के लिए रूके । लेकिन पांच मिनट हुए फिर डाकिये ने आवाज लगायी तब भी वही जवाब मिला । अब दस मिनट हो गये लेकिन अभी तक दरवाजा नहीं खुला लेकिन अंदर से लगातार आवाज आ रही थी कि में अभी आ रही हुं , कृप्या आप रूके ।

अब काफी समय हो गया और दरवाजा अभी तक नहीं खुला । डाकिये का चेहरा पुरी तरह से लाल हो गया । वह कहता है कि अब आप ऑफिस से ही चिठ्ठी ले जाइयेगा । मैं जा रहा हूं । और वह जाने लग जाता है तभी धीरे से दरवाजा खुलता है । डाकिया देखता है तो वह रोने लग जाता है और उस लड़की को देख कर उसका सारा गुस्सा शांत हो जाता है । क्योंकी वह दोनो पैरो से लंगड़ी थी । उसकी दोनो टांगे नही थी । डाकिया उस बहन से माफी मांगता है और कहता है कि ये लिजिए आपका खत ।
डाकिया उदास मन से घर जाता है । और आज डाकिया पुरी तरह से शांत था । मानो उसे पता चल गया कि घुस्सा उसके किसी काम का नही है । आज उसी घुस्से के कारण उसे बहुत ही शर्मिंदा होना पड़ा । और इस दिन से डाकिये ने घुस्सा पुरी तरह से छोड़ दिया ।

दौबारा उसी घर का खत

डाकिये की कहानी और अन्य कहानीयां | bachhon ki kahaniyan

एक दिन डाकिये के पास उसी घर का खत आया । वह उस खत को जल्दी ले लेकर उस घर पर पहुंचा और कहा कि बहन आपका खत आया है । उस लड़की ने फिर आवाज दि कि मैं आ रही हूं । तब उस डाकिये ने कहा कि आप आराम से आ जाईये मैं यह खत यहीं पर रख रहा हूं । लेकिन उस लड़की ने कहा नहीं भईया रूकिये मैं आपके लिए कुछ लाता हूं । लेकिन इस बार डाकिया चुप चाप खडा रहा और उसके आने का इंतजार करने लगा । लड़की दरवाजा खोलती है और डाकिये को एक गिफ्ट देती है । और कहती है कि भईया आप इसे घर लेजाकर खोलना । डाकिया कुछ भी समझ नही पाया और डाकिया साईकल पर उस गिफ्ट के साथ चला जाता है ।

अनोखा गिफ्ट

घर लेजाकर वह उस गिफ्ट को खोलता है और तो उस गिफ्ट में देखता है कि एक जोड़ी जूते थे । वह हैरान हो गया और उसके साथ एक चिठ्ठी भी थी । उस चिठ्ठी में लिखा था कि यह एक जोड़ी जुते मेरे घर पर फालतू में पडे थे । और जब आप पहली बार मेरे घर आये तो मेने देखा कि आपके पैरो में जूते नहीं थे. इसिलिए मैने यह जूते की जोडी आपको दे दी । क्योंकि आपका काम तो हर घर में पैरो के साथ चलकर जाना पड़ता है । और मैरे तो पैर है नहीं इसलिए यह मेरे किसी काम के नहीं है ।
वह डाकिया पुरी तरह से रो पड़ा और वह सोचता है कि उसने तो सबसे बडी चीज मुझे दे दी और यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है । और वह वचन लेता है कि वह आज से कभी भी घुस्सा नहीं करगे ।

अगले दिन वह उसी लड़की के घर पर जाता है और उससे कहता है कि बहन आप पैरो से लंगड़ी नहीं है लंगडे तो वह है जिनके पास पैर होते हुए भी भगवान का धन्यवाद नहीं करते है और हाथ – पैर होने के बावजूद भी वे किसी का भला नहीं करते है । हकीगत में तो वह लंगड़े है । आपकी तो सोच काफी बड़ी है ।
आज से आप मेरी बहन हो और मैं आपका भाई ।
दोस्तो कैसी लगी यह कहानी दोस्तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखना ।

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बुजुर्ग की मरहम कहानी

एक बुजुर्ग व्यक्ति था, जो बेहद कमजोर और बीमार था। और वह अकेला ही रहता था। बुजुर्ग आदमी की उम्र बहुत ज्यादा हो गयी थी जिसके कारण इसके कंधो में दर्द रहता था। लेकिन वह इतना कमजोर था कि वह स्वयं अपने कंधो पर दवा भी नहीं लगा सकता था।

वह बुजुर्ग आदमी हमेशा अपने कंधो पर दवा लगाने के लिए दूसरो के सामने हाथ जोड़ता और विनती करता था। एक दिन उसने एक चलते हुए युवक से कहा कि वह उसके कंधो पर दवा लगा दे। उसके साथ रहने वाला कोई भी नहीं है। भगवान तेरा भला करेगा।

मलहम की डिबिया

डाकिये की कहानी और अन्य कहानीयां | bachhon ki kahaniyan

युवक ने कहा कि बाबा मेरे हाथों कि अंगुलियों में तो खुद दर्द रहता है। मैं कैसे तेरे कंधो की मालिश करुँ?

बुजुर्ग ने कहा कि बेटा दवा मलने की जरूरत नहीं । बस इस डिबिया में से थोड़ी मरहम अपनी अंगुलियों से निकालकर मेरे कंधो पर फैला दे।

युवक ने अनिच्छा से डिबिया से में से थोड़ी सी मरहम लेकर अंगुलियों से बुजुर्ग व्यक्ति के दोनों कंधो पर लगा दी। दवा लगते ही बुजुर्ग की बेचैनी कम होने लगी और वो इसके लिए उस युवक को आशीर्वाद देने लगा।

बेटा, भगवान तेरी अंगुलियों को भी जल्दी ठीक कर दे। बुजुर्ग के आशीर्वाद पर युवक अविश्वास से हँस दिया लेकन साथ ही उसने महसूस किया कि उसकी अंगुलियों का दर्द भी गायब-सा होता रहा है।

वास्तव में बुजुर्ग को मरहम लगाने के दौरान युवक की अंगुलियों पर भी कुछ मरहम लग गई थी। यह उस मरहम का ही कमाल था जिससे युवक की अंगुलियों का दर्द गायब सा होता जा रहा था। अब तो युवक सुबह, दोपहर और शाम तीनों वक्त बुजुर्ग व्यक्ति के कंधों पर मरहम लगाता और उसकी सेवा करता ।

कुछ ही दिनों में बुजुर्ग पूरी तरह से ठीक हो गया और साथ ही युवक के दोनो हाथों की अंगुलियां भी दर्दमुक्त होकर ठीक से काम करने लगीं।

तभी तो कहा गया है कि जो दूसरों के ज़ख्मों पर मरहम लगाता है उसके खुद के जख्मों को भरने में देर नहीं लगती । दूसरो की मदद करके हम अपने लिए रोग-मुक्ति , अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु ही सुनिश्चित करते है।

दादा जी की कहानी

किशनपुर नाम का एक गाँव था। गाँव के ज्यादातर लोग शिक्षित नहीं थे। गाँव में सभी अपने काम से बहुत खुश थे परन्तु उनकी एक समस्या थी कि आस-पास सामान खरिदने के लिए कोई बाजार नहीं था।
उसी गांव में गिरधारी लाल की एकमात्र ही दुकान थी । जिस पर सभी राशन का सामान मिलता था। लेकिन गिरधारी लाल स्वभाव से लालची व्यक्ति था । वह हर व्यक्ति को ठगता था। लेकिन गांव वाले कुछ कर भी नहीं सकते थे। इसलिए उन्हे उसी दुकान से मजबुरन सामान खरिदना पड़ता था।

गिरधारी लाल की एकलोती दुकान थी। इसलिए गिरधारी लाल की दुकान पर हमेशा भीड़ लगी रहती थी। इसी का फायदा उठाकर वह सामान में हेरा-फेरी करता और लोगों को महंगा और कम सामान बेचता था।

गिरधारी लाल का लालच दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहा था । अब वह तराजू के नीचे चुंबक लगाकर लोगों को कम सामान देता और पैसे पूरे लेता।

उसके इस स्वभाव से लोग बहुत परेशान थे। लेकिन सभी की मजबुरिया थी।

घमंडी और लालची

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गाँव में एकमात्र उसकी दुकान होने से गिरधारी लाल का व्यवहार लोगों के प्रति बदल गया। वह गाँववालों से रौब से बात करने लगा। उसमें अब लालच के साथ-साथ घमण्ड आ गया था।

एक दिन की बात है जब राजू, गिरधारी लाल की दुकान पर टॉफियां लेने गया। गिरधारी लाल ने उसे पाँच रुपये की चार ही टॉफिया दीं।

राजू- मैंने तो आपको पाँच रुपये दिये हैं, फिर ये चार टॉफियां क्यों?…

गिरधारी लाल- पाँच रुपये की चार ही टॉफियां मिलेंगी। लेनी है तो लो वरना जाओ।

राजू- मुझे पाँच रुपये की पाँच टॉफियां चाहिएं।

गिरधारी लाल- तू जाता है कि नहीं।

राजू नाराज होकर वहां से जाने लगता है।

राजु- अंकल तो बेईमानी कर रहे हैं। ये सही नहीं है।

अगले दिन भी राजू उसी दुकान पर जाता है। लेकिन वह देखता है कि तराजू के नीचे एक चुंबक चिपकाया हुआ है।

राजू- अरे, यह क्या? गिरधारी अंकल तराजू के नीचे चुबंक लगा रहे हैं। मुझे इनकी सच्चाई गाँववालों के सामने लानी ही होगी।

राजू उसी समय अपने गाँव के मूखिया के पास जाता है। और कहता है कि

राजू- मुखिया जी, गिरधारी अंकल बेईमानी कर रहे हैं। उन्होंने तराजू के नीचे चुंबक लगाई हुई है। जिससे सामान कम तोला जा सके।

मुखिया- क्या बात कर रहे हो, राजू। चलो हम आज ही उसे रंगे हाथ पकड़ते हैं।

मुखिया गाँववालों को इकट्ठा कर गिरधारी लाल की दुकान पर आते हैं।

गिरधारी लाल घबरा जाता है। और कहता है कि

गिरधारी लाल- आइए मुखिया जी, कैसे आना हुआ। कुछ खरिदना है।

राजू- नहीं अंकल जी, मैने आपकी चोरी पकड़ ली है।

गिरधारी लाल- अरे बेटा, तुम्हारा क्या मतलब है?

राजू जल्दी से तराजू के नीचे उस चुम्बक को बाहर निकालता है। और मुखिया के हाथो में दे देता है।

गिरधारी लाल- मुखिया जी, मुझे माफ कर दीजिए । मैं लालच में पड़ गया था। मैं फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा।

मुखिया- तुम्हारे लालच की सजा यह है कि तुम ग्राम पंचायत विकास फंड में पाँच हजार रुपये दंड के रूप में दोगे।

गिरधारी लाल- जी, मुखिया जी मंजूर है।

शिक्षा- एक पढ़ा –लिखा और समझदार व्यक्ति ही धोखा खाने से बच सकता है। इसलिए पढ़ना-लिखना बहुत जरूरी हैं।

किटटी की कहानी

किट्टी- चलो दोस्तों, आज पार्टि करते हैं।

मोली- पार्टी! कैसी पार्टी? कट्टी।

किट्टी- हाँ, हाँ ! पार्टी, चलो मोली, चिंटू और मोंटू।

चिंटू- नहीं किट्टी, हमारे पास पैसे नहीं है।

किट्टी- अरे, तुम चिन्ता मत करो। मेरे पास बहुत पैसे हैं। चलो, आज मैं पार्टी दूंगी।

मोंटू- किट्टी, तुम्हारे पास पैसे हैं?

किट्टी- हाँ, ये देखो।

चिंटू- किट्टी, इतने सारे रूपये।

किट्टी- चलो, अब हम सब कुछ खाने चलते हैं।

मोंटू- हाँ किट्टी, मुझे भूख भी लग रही है।

मोली- हाँ, मुझे भी।

मोली- वाह! किट्टी मजा आ गया। लेकिन तुम्हारे पास इतने रुपये कहाँ से आए?

किट्टी- मम्मी ने दिए हैं।

मोंटू- अच्छा, वाओ! किट्टी, आंटी तो बहुत अच्छी हैं।

किट्टी- चलो, अब चलते हैं। कल फिर पार्टी करेंगे। मेरे पास अभी और पैसे बचे है।

चिंटू- बहुत मजा आएगा।

अगले दिन फिर

किट्टी- हैलो दोस्तों, आज तुम सब क्या खाओगे?

मोंटू- पिज्जा! यम्म-यम्म पिज्जा।

मोली- मैं तो चाऊमीन खाऊंगा।

इस तरह वे फिर एक बार और पार्टी करते है। और उसके बाद किट्टी अपने घर चली जाती है। अगले दिन

किट्टी- आह! मम्मी, मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है।

मम्मी- बेटा, तुम लेट जाओ । मैं डॉक्टर को फोन करती हूँ।

डॉक्टर- किट्टी! क्या तुमने बाहर का खाना खाया था?

किट्टी- नहीं, मैंने बाहर का खाना नहीं खाया।

डॉक्टर- अच्छा किट्टी, अब तुम आराम करो।

डॉक्टर ने किट्टी के मम्मी से कहा कि बहन जी किट्टी ने जरूर कुछ बाहर का खाया है। वह झूठ बोल रही है, आप ध्यान रखें।

मम्मी- ठीक है डॉक्टर, मैं किट्टी का ध्यान रखूंगी।

इसके बाद किट्टी की मदद उसके पास जाती है। और पूंछती है कि क्या तुमने मेरे पर्स से पैसे चुराए हैं?

किट्टी- नहीं मम्मी!

मम्मी- मैं जानती हूं किट्टी तुमने मेरे पर्स से पैसे चुराये हैं। तुम झूठ बोल रही हो । मुझे मोली ने सब बता दिया है।

किट्टी- सॉरी मम्मी, प्लीज मुझे माफ कर दो। मैं फिर कभी भी ऐसा नहीं करूंगा। और न ही झूठ बोलूंगी। और न ही चोरी करूंगी।

शिक्षा-

दोस्तो हमें कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए और न ही हमें चोरी करनी चाहिए। भले ही वह चोरी छोटी क्यों न हो। क्योंकि यह आगे बढ़कर हमारा व्यवहार बन जाता है।

और दोस्तो कभी भी झुंठ नहीं बोलना चाहिए क्योंकि झुठ कभी भी टिक नहीं पाता है। वह कभी न कभी सामने आ ही जाता है। और इससे दुख भी बहुत होता है।

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