Tue. Nov 5th, 2024

कहानी के बारे में:

मित्रो और सर, आज की इस नयी प्रेरक कहानीयों (5 नयी बच्चों की कहानीयां) में आपका स्वागत है। आज की कहानी आपके जिन्दगी की कुछ सच्चाईयों को आपके सामने लायेगी। इस कहानी का टाइटल है- दादी का कमरा और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां। इसके अलावा भी हम हम भूतिया कहानी और जादुई परियों की कहानीयां (horror ghost stories and gairy tales) भी लिखते है।

मुझे पूरी उमीद है कि आपको यह कहानीयां बहुत पसन्द आयेगी। और यह कुछ असलीयत पर भी आधारित है। हम एक उद्देश्य से कहानीयां लिखते है। मतलब हम एक पुरानी परम्परा को जिंदा रखना चाहते है। यह वह परम्परा है जब हमें पुराने समय में दादा-दादी, नाना-नानी या पापा-मम्मी कहानीयां सुनाया करते थे।

और आज के समय में परिवार की यह खुशिया जिंदगी की दौड़ में दबती ही चली जा रही है। हम यह चाहते है कि आप अपने बच्चो के साथ कहानीयों के द्वारा जुड़े रहे और जिंदगी की दौड़ में थोड़ा समय अपने परिवार के लिए बचा पाएं।

तो चलिए शूरू करते है आज की कहानी:

दादी का कमरा (room of grandmother)

यह कहानी एक छोटे परिवार की है। इस परिवार में पत्ति-पत्नी (स्वेता और राजीव) और उसके बच्चे (दो बच्चे: अमन और रवि) रहते है तथा उनके साथ दादी भी रहती थी। परिवार अच्छे से चल रहा था। लेकिन सास बहु के झगड़े भी होते रहते थे। और घर में पैसो की कमी रहने के कारण घर का माहोल कभी कभी खराब भी हो जाता था।

यह परिवार बिल्कुल सामान्य अन्य परिवार की तरह ही था। वह रोज के झगड़ो के साथ । स्वेता रोज राजीव को नौकरी न होने के ताने मारती रहती थी। और सास से हमेशा तंग सी रहती थी। इसके साथ ही बच्चो को समय पर स्कुल भेजने के लिए तैयार भी करना पड़ता था। उनका घर भी एक गरीब बस्ती के बीच में था।

दादी का कमरा और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां

एक दिन दिन राजीव के नौकरी लगने की खबर आती है। इस खबर से पूरा परिवार खुशियों से झुम उठता है। और स्वेता की खुशियों का तो ठिकाना ही नहीं रह पाता है। वह पूरी बस्ती में लाडू बांटती है। इसके बाद स्वेता का पूरा स्वभाव ही बदल जाता है।

इस खुशी के बाद वह किसी से भी सीधे मूंह बात तक नहीं करती है। और अपने बच्चो का स्कूल भी बदलवा देती है। मतलब अपने बच्चो को अंग्रेजी स्कूल में भेजने लगती है। साथ एक अन्य घर बनाने की जिंद कर देती है। राजीव इस बात से बिल्कुल खुश नहीं था। उसकी नौकरी भी अभी ही लगी थी। और इतना खर्च कर पाना बिल्कुल संभव नहीं था।

लेकिन स्वेता अपनी जिद पर अड़ी रहती है। और राजीव को उसकी जिद के आगे सिर झुकाना ही पड़ता है। अगले दिन ही वे दोनो बैंक जाकर 10 लाखो रूपये का लोन लेते है। और एक अच्छी सी जमीन को खरिद लेते है।

स्वेता कुछ ही दिनों में इंजीनियर को बुलाती है और उस घर का नक्सा बनाना शुरू कर देती है। राजीव भी घऱ पर आता है। उस नक्से में स्वेता अपना कमरा और बच्चो के लिए बड़े कमरो का नक्सा तैयार करवा लेती है। उसके बाद दो कमरे मेहमानो के लिए और एक रसोई के लिए भी कमरे का चुनाव कर लेते है।

अब दादी के लिए एक कमरा बचता है लेकिन स्वेता कहती है कि इस कोने में सासू माँ का एक छोटा-सा कमरा और बाकि खाली जगह पर स्टोर रूम बनेगा । जहां पर बड़े बड़े बॉक्स रखेंगे। और इस तरह दादी के लिए एक छोटे से कोने में चारपाई जितना कमरे का चुनाव कर लिया जाता है।

और स्वेता जल्दी से काम भी शूरू करवा लेती है । उस घर के लिए स्वेता का प्यार बहुत ही अधिक था। स्वेता हर दिन उस जगह पर जाकर उसका निरक्षण करती रहती थी। और दोनो पैरो पर खड़ी रहकर हर ईंट को अच्छे से चुनवाती है। वह सुबह जल्दी से घऱ का काम खत्म करके सीधे ही अपने नये घर को देखने के लिए आ जाती है।

वह धुप या बरसात हर वक्त घर पर नजर रखकर वह अपने प्रत्येक कोनो को अच्छे से तैयार करवाती है। और शाम को भी वह देर से ही लौटती थी। उसका स्वभाव पहले से बिल्कुल बदल जाता है। स्वेता हर रोज अपने पड़ोसीयों को ताने मारती थी।

एक दिन राजीव को एक नया काम मिलता है। उसके लिए कुछ लोग उसके घर पर आते है। स्वेता उनके लिए बहुत ही अच्छी तरिके से तैयारी कर लेती है। और राजीव भी उनका घर पर इंतजार करता है। थोड़ी देर बाद कुछ अफसर उनके घर पर पहुंच जाते है।

अफसर- कैसे हो राजीव बेटा। तुम्हे पता है न कि हम तुम्हारे जिंदगी के सबसे बड़े और जरूर काम के लिए यहां पर आये है।

राजीव- हां बिल्कुल, क्यों नहीं? चलिए खाना खाते हुए बात करते है।

अफसर और राजीव खाने पर बैठ जाते है। थोड़ी देर बाद राजीव की मां भी खाने के लिए आती है। राजीव अपनी मां को देखकर स्वेता को ईशारा करता है। स्वेता तुरन्त अपनी सास का हाथ पकड़कर उन्हे अंदर ले जाने की कोशिश करती है तभी अफसर उसको देख लेते है। और दादी को खाने के लिए बैठने को कहते है।

राजीव भी मां को खाने के लिए बैठने को कहती है। उसके बाद अफसर और दादी के बातचीत शूर हो जाती है। और खाते समय गाना भी गाते है। अफसर को इस बात से बहुत खुशी होती है। और अफसर वह काम राजीव को दे देते है। राजीव और स्वेता भी बहुत खुश होते है।

दादी का कमरा और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां

इसके बाद अफसर चले जाते है और स्वेता पूरा काम खत्म करके सोने के लिए कमरे में आती है। और राजीव को समझाती है कि वह किसी भी तरिके से अधिक पैसे कमाए और सभी लोन को भी भरना है। साथ ही एक महीने बाद हमारा नया घर भी तैयार हो जाएगा।

राजीव स्वेता के दबाव में कुछ गलत कदम उठा लेता है। और इसका परिणाम से कम्पनी डूब जाती है। और राजीव को उसकी गलती के कारण नौकरी से निकाल देते है। राजीव का घर भी तैयार हो जाता है। लेकिन उनके उपर बहुत सारा कर्ज भी आ जाता है। इसलिए कर्ज देने वाले उस नये घर पर कब्जा कर लेते है। और उनकी जिंदगी पहले की तरह हो जाती है।

अव स्वेता के हाल एक भिखारी के समान दिखने लगते है। और अन्य लोग भी स्वेता को ताने मारने लगते है। कुछ दिनो बाद उसकी सांस भी मर जाती है। इस तरह गरिबी के साथ स्वेता 10 साल गुजार लेती है। और मेहनत करके वह अपने बच्चो की शादी भी करवा लेती है। राजीव भी गरीबी के कारण 11 साल बाद मर जाता है। अब स्वेता अकेली ही रह जाती है।

अब स्वेता का भी उसकी सास की तरह ही हाल हो जाता है। उसके बेटे की पत्नी भी अंग्रेजी भाषा बोलने वाली होती है। जो कि स्वेता को बिल्कुल पसन्द नहीं था। उसके बेटे (रवि) और बहु (चित्रा) दोनो ही अपनी जिंदगी में खुश थे वे कभी अपनी मां के बारे में नहीं सोचते है।

कुछ महिनों स्वेता के बेटे को अच्छी नौकरी लग जाती है और वह उसी घर को फिर से खरिद लेते है जिसे स्वेता ने दिन रात खड़े रहकर बनवाया था।

चित्रा नये घर को देखकर बहुत खुश होती है। और चित्रा अपने बड़े कमरे को चुन लेती है। और उसका दूसरा भाई भी अपने लिए बड़ा कमरा चुन लेते है। इसके बाद बचती है चित्रा की सास। चित्रा अपनी सांस के लिए वही कमरा चुनती है जिसे स्वेता नें अपने सास के लिए बनवाया था।

स्वेता यह देखकर बहुत दुखी होती है। और उसे भी अपने समय की याद आती है जब वह अपनी सास के साथ ऐसा दुरव्यवहार करती थी। लेकिन अंत में उसने जैसा बोया था वैसा ही उसको मिलता है।

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अंतिम शब्द:

मित्रो और सर मुझे उमीद है कि आपको यह कहानी बहुत पसन्द आयी होगी। और यह गलती अक्सर हर घर में होती ही है। इसलिए बाद में पछताने से अच्छा है कि आप अपनी सांस या मां का अच्छे से ख्याल रखे ताकि आपके बच्चे भी वहीं सीखे।

अन्यथा अंत में आप जैसा बोयेंगे वैसा ही पाएंगे।

अगर आपको कहानी अच्छी लगती है तो इसे अपने मित्रो और परिवार के साथ जरूर सांझा करे।

कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद।

वफादार वजीर ki kahani

प्राचीन काल की बात है। तब ईरान के बादशाह हरितिमुल्लाह थे। उनके दरबार में बहुत ही सज्जन एक वजीर था। बादशाह उसके ऊपर बहुत भरोसा करते थे। वह भी तन-मन से बादशाह की सेवा में जुटा रहता था। यही नहीं, वह सदैव जनता की भलाई के काम भी करता रहता था। दूसरों की सहायता करना उसे अच्छा लगता था।

वजीर कहा करता- बुरे आदमी को प्रसन्न रखने का सबसे अच्छा उपाय है, यदि पीठ पीछे वह तुम्हारी निन्दा करता है तो तुम उसके सामने उसकी प्रशंसा करो।

वफादार वजीर ki kahani और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां
By pixabay.com

एक दिन किसी कारणवश बादशाह वजीर से नाराज हो गया। बादशाह ने वजीर को कारागार में डाल दिया। वजीर के परोपकारी कार्यों से दरबार के सभी व्यक्ति खुश रहते थे। कारागार के कर्मचारी भी वजीर को किसी भी प्रकार की तकलीफ न होने देते थे। सभी चाहते थे कि किसी तरह दयालु वजीर कारागार से बाहर आए, मगर बादशाह को मनाना ‘टेढी खीर’ थी। दरबारी जानते थे बादशाह से वजीर के लिए दया कि भीख मांगना, अपने को मुसीबत में फंसाना है। इसीलिए वे चुप रहते थे, किन्तु थे मन में दुखी।

कारागार में ही एक दिन वजीर को अत्यन्त गुप्त रीति से पड़ोसी बादशाह का पत्र मिला। पत्र में लिखा था- अत्यन्त खेद की बात है, बादशाह ने आप जैसे गुणी व्यक्ति का सही सम्मान करना तो दूर आपको कष्ट भरा जीवन बिताने के लिए विवश कर दिया है।

यदि आप मेरे राज्य में रहना स्वीकार कर लें तो मैं आपको कारागार से निकालकर सुख और सम्मानपूर्वक रखूंगा। आप जैसे गुणी व्यक्तियों के लिए कारागार में जीवन व्यतीत करना अच्छा नहीं है। कारागरा से यहाँ तक आने की पूरी व्यवस्था भी मैं कर दूंगा। आपको किसी प्रकार की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। मैं आपके उत्तर की प्रतीक्षा करूंगा।

वजीर ने पत्र को ध्यानपूर्वक पढा और उसके बाद सोच-समझकर उसी पत्र के पीछे अपना उत्तर लिख देता है। इसी बीच इन बादशाह के गुप्तचर को भनक पड़ जाती है। और वह तुरन्त अपने बादशाह के पास जाता है। और उन्हे बताता है कि वजीर कारागार में रहकर पड़ोसी बादशाह के साथ पत्र-व्यवहार कर रहा है।

यह सुनकर बादशाह आग बगुला हो जाता है। उसने तुरन्त अपना आदेश दिया कि पत्र के साथ उस पत्रवाहक को मेरे सामने पेश किया जाए तथा इसी के साथ उस वजीर को भी लाया जाए। दोषी होने पर मैं उसका सिर कलम करवा दूंगा। आदेश का पालन हो।

सभी सिपाही तौड़कर कारागार की ओर जाते है और उस पत्रवाहकर को पकड़कर बादशाह के सामने हाजिर करते है।

सिपहीयों ने वजीर को भी बादशाह के सामने प्रस्तुत किया। बादशाह ने वजीर से पूंछा- क्या तुम्हे पड़ोसी राज्य के बादशाह का कोई पत्र मिला है?

-जी हजूर! वजीर ने कहा।

-तब तुमने उत्तर भी लिखा ही होगा। तुमने मेरे विरुद्ध षडयंत्र किया। जानते हो इसकी सजा?- बादशाह ने क्रोध से भुनभुनाए।

-पत्र आपके हाथों में है। पढ़कर देख लें।– वजीर ने शालीनता से कहा।

बादशाह पत्र पढ़ने लगे। पत्र की पीठ पर वजीर ने अपने उत्तर में दूसरे बादशाह को लिखा था- आपने मेरी जितनी प्रशंसा कि है, मैं उसके योग्य बिल्कुल नहीं हूं। आपके आदेश का मैं किसी प्रकार भी पालन नहीं कर सकता। इस शाही परिवार ने मेरा पालन किया है। बादशाह का मैने नमक खाया है। यदि बादशाह ने किसी बात से नाराज होकर मुझे कारागार में भेज दिया तो क्या इसी कारण मैं उनके उपकारों को भूल जाऊँ? हमेशा भलाई करने वाले की एकाध बुराई तो देखनी ही नहीं चाहिए।

पत्र पढ़कर बादशाह की आँखो से आंसू गिरने लगे। उसने वजीर को बंधनमुक्त करते हुए कहा- मुझे क्षमा करना। दूसरों के कहने में आकर मैने एक विद्वान और निद्रोष व्यक्ति को कारागार में भेजकर बड़ी भूल की।

वजीर फिर से सम्मानपूर्वक अपना काम करने लग जाता है।

अब चोरी नहीं ki kahani

मंगलवन में एक बन्दर रहता था। नाम था चिम्पू। चिम्पू बहुत ही नटखट और शरारती था। इन दिनों उसे चोरी करने की बहुत बुरी आदत पड़ गयी थी। चिम्पू का मित्र था भालू। जिसे सभी जानवर कल्लू कहते थे। वह चिम्पू को बहुत चाहता था।

जंगल की सीमा से सजा हुआ बाबूराव का बगीचा था। उस बगीचे में आम, केले व अंगूर के पौधे लगे थे। वैसे तो उस बगीचे की देख –रेख हेतु बाबूराव ने दो आदमियों को लगा रखा था।

पर उनके न होने पर चिम्पू चुपके से बगीचे में चला जाता और मजे से कभी अंगूर खाता तो कभी आम तो कभी केले। फिर ढेर सारे फल तोड़कर अपने साथ ले जाता और जाकर अपने प्यारे मित्र कल्लू को भी खाने को देता।

अब चोरी नहीं ki kahani

लगातार कई दिनों तक चिम्पू के हाथो तरह-तरह के फल खाने के बाद कल्लू को शक हुआ । उसने पूछा- चिम्पू तुम ऐसे स्वादिष्ट मीठे फल कहाँ से लाते हो यार… , अपने जंगल में तो ऐसे फलों के इक्के-दुक्के ही वृक्ष है।

यार, तुम आम खाओ न! गुठली क्यों गिनते हो? –चिम्पू लापरवाही से कहता।
पर कल्लू को चिन्ता हुई. आखिर मेरा मित्र यह सब लाता कहाँ से है। कहीं वह किसी मुशीबत में न फंस जाए।

इधर बाबूराव के बागवानों को पता लग चुका था कि उनकी गैरहाजिरी मे एक शरारती व चोर बन्दर बगीचे में आता है।

उन्होंने उस बन्दर को फंसाने की एक तरकीब खोज निकाली।

बागवानों ने टोकरी भर केले तोड़कर बगीचे में एक पेड़ के नीचे रख दिया और उस पेड़ की डाली पर जाल रख दिया। फिर उस जाल से निकली एक पतली रस्री को टोकरी में रखे केलों की डंठल से बांध दिया।

चिम्पू अपने समय पर आया और मैदान साफ देखकर उछलते –कूदते हुए वह बगीये में घुसा।

तभी उसकी नजर पेड़ के नीचे रखे टोकरी भर केलों पर पड़ी। पके हुए केलों को देखकर उसके मुंह से लार टपकने लगी। वह लालच में नीचे उतरकर टोकरी के पास पहुँचा और ज्योंही उसने केलों को उठाना चाहा तो जाल और केलों में बंधी रस्सी खिंच गई। पूरा जाल लहराकर चिम्पू के ऊपर आ गिरा।

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अगले ही पल चिम्पू जाल में फंस गया। वह उसमें से मुक्त होने के लिए लिए हाथ –पैर मारने लगा। चिम्पू बहुत घबराया, रोने लगा कि अब क्या होगा?

दोपहर को जब बगीचे के बागवान लौटे तो उस चोर बन्दर को जाल में फंसा देखकर खुश हुए । वे जाल में फंसे तड़पते चिम्पू के पास आकर बोले- बहुत चुरा-चुरा के फल खा लिए बन्दर। अब मदारी के पास चलकर ता थैइया करना।

चलो भाई, इसे जाल समेत उठा के ले चलते हैं। – कहकर ज्योंही वे दोनों उसे उठाने को झुकेस, तभी उन्हे भालू की गर्जना सुनाई पड़ी। वह गुस्से से आँखे लाल किए हुए उन्ही की ओर बढ़ा चला आ रहा था। दोनों बागवान यह देखकर चिम्पू को वहीं छोड़ घबराकर भागे।

वह भालू तो चिम्पू का मित्र कल्लू था। अत: वह उसके पास आया और उसने चिम्पू को जाल से आजाद किया। जाल से मुक्त होते ही चिम्पू अपने मित्र के गले जा लगा और कृतज्ञ भाव से बोला- मित्र, आज तुमने आकर मुझे बचा लिया वरना वे मुझे मदारी के पास पहुँचा देते। मित्र तुम कभी मेरा साथ न छोड़ना।

शर्त पर- कल्लू फिर बोला- तुम मुझे वचन दो कि कभी तुम इस तरह से लालच व चोरी नही करोंगे। लालाची व चोर एक न एक दिन मुसीबत में जरूर फंसते है।

मुझे माफ कर दो दोस्त, मैं वायदा करता हूँ कि आज के बाद मैं अपने जंगल के बाहर नहीं निकलूंगा। जंगल में ही जो रुखा-सुखा मिलेगा उसी को खाकर सन्तुष्ट रहूंगा पर लालच व चोरी कभी नहीं करूंगा।

ईर्ष्या का फल

तालाब में बहुत सारें मेंढक रहते थे। उन सब मेंढकों का मुखिया बहुत ही सज्जन था लेकिन उन मेंढकों में चमकू मेंढक चमकू मेंढक बहुत ही चालाक था। वह मुखिया मेंढक से बहुत जलता था। वह मुखिया मेंढक को मार कर स्वयं मुखिया बनना चाहता था।

दादी का कमरा और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां
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चमकू मेंढक मुखिया को अपनी ताकत से नहीं मार सकता था। मुखिया से सभी मेंढक प्यार करते थे। एक दिन चमकू मेंढक घूमता हुआ पास के एक जंगल में चला गया। तभी एक सांप उस पर झपटा। सांप को देखकर चमकू घबरा गया लेकिन तभी वह सम्भलकर बोला, “अरे भाई! मुझे क्यों मार कर खाते हो? मेरी बात तो सुनो। मैं तुम्हे ऐसी जगह ले चलता हूँ जहाँ तुम्हें सैकड़ों मेंढक खाने को मिल सकते हैं।“

चमकूं की बात सुनकर सांप को लालच आ गया। सांप चमकू के साथ तालाब के पास पहुँचा। चमकू ने सांप से कहा, “देखो! इस तालाब में सैकड़ो मेंढक रहते है। मैं तुम्हारे लिए रोज एक मेंढक को अपने साथ लाऊंगा। तुम उस मेंढक को मार कर खा जाना।“

सांप ने चमकू की बात मान ली। सांप वहाँ एक पेड़ के नीचे बने बिल में छिप कर बैठ गया। चमकू अगले दिन सुबह एक मेंढक के साथ वहाँ आया । तभी सांप ने झपटकर उस मेंढक को पकड़ लिया और पलक झपकते ही निगल गया। अगले दिन चमकू फिर एक दूसरे मेंढक को साथ लेकर आया। सांप उस मेंढकर पर झपटा और उसे भी निगल गया।

एक-एक करके चमकू ने आधे से अधिक मेंढक सांप के शिकार बनवा दिये। एक दिन जब सारे मेंढक समाप्त हो गए तो चमकू ने मुखिया को भी सांप का शिकार बनवा दिया। जब सारे मेंढक समाप्त हो गये तो सांप चमकू के बेटे को निगल गया।

चमकू अपने बेटे की मौत से बहुत दु:खी हुआ लेकिन उस भयंकर सांप के सामने कर भी क्या सकता था? एक दिन सांप ने चमकू को ही पकड़ लिया। चमकू ने सांप से कहा. “मैंन तुम्हें इतने मेंढकों का शिकार कराया, अब तुम मुझे भी खा जाना चाहते हो। यह तो गलत बात है।“

“मुझे बहुत जोर से भूख लगी ह। अब तो तुम्हें ही खाकर पेट भरना होगा।“ सांप ने कहा।

चमकू अपने फैलाये जाल में स्वयं फंस चुका था। वह अब मरता क्या करता। सांप उसे भी निगल गया।

किसी ने सच ही कहा है कि जो व्यक्ति अपने लोगों को धोखा देता है, एक दिन उसके साथ भी धोखा ही होता है। चमकू अपने परिवार के साथियों को समाप्त करवा देने के बावजूद वह नहीं बच सका और उसे भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।

अपनी गलती और अपनी माफी

यह कहानी एक जंगल की है। इस जंगल में एक बहुत बड़ा –सा पेंड़ था। और पेड़ पर चार पक्षी रहते थे। उन चारो पक्षीयों में तोता सबसे समझदार था। वह बहुत ही सहनशील था। उसी के कारण चारों पक्षी एक साथ एक परिवार में रह पाते थे। क्योंकि बाकि तीनों पक्षी, ‘कोयल, कबूतर तथा कौआ’ में एक बुरी आदत थी कि वे कभी भी अपनी गलती को नहीं मानते थे। और अपनी गलती दूसरो के सिर पर डाल देते थे। लेकिन तोता हमेशा उन गलतियों पर परदा डाल देता था। और उन्हे साथ-साथ रहने की शिक्षा देता था।

एक दिन की बात है कि तोते ने कबूतर को बाहर से कुछ फल लाने के लिए कहां उसके लिए कबूतर को कुछ पैसे भी दिये। तोते ने कबूतर से कहा कि तुम यह फल शाम होने से पहले ही ला देना । क्योंकि शाम को फल अंधेरे में अच्छे दिखाई नहीं देते है। और दूकानदार अंधेरे में खराब फल देगा। इसलिए इस बात का तुम ध्यान देना। इसलिए तुम अभी निकल जाओ क्योंकि शाम होने में अभी बहुत समय है।

दादी का कमरा और अन्य 5 नयी बच्चों की कहानीयां

कबूतर उसी समय वहां से निकल गया। तब कबूतर ने सोचा कि अगर मेने अभी फल ले लिये तो मुझे घर जल्दी जाना पड़ेगा। इसलिए मैं अभी खेलने के लिए चला जाता हूं। और शाम होने से पहले ही में घर पर आ जाऊंगा। लेकिन खेलते खेलते शाम हो जाती है। कबूतर जल्दी से बाजार जाता है और वहां से फल लेकर सीधे ही घर पर आ जाता है। कौआ और कोयल खाने के लिए बेढे थे।

कबूतर जैसे ही आया तोते ने उससे फल ले लिये और खाने की टेबल पर रख दिये। कौआ और कोयल जैसे ही फल खाने लगे तो देखा कि सभी फल खराब थे। दोनो ही कबूतर पर जोर –जोर से चिल्हाने लगे। तभी तोता वहां आ गया । कबूतर ने तोते को देख कर अपनी गलती तोते पर डाल दी कि तोते ने ही शाम को पैसे दिये थे जिससे मुझे खराब फल दिखाई नहीं दिये। पूरी गलती तोते की है। और तोते ने पूरी गलती अपने ऊपर ले ली । और तीनो ही शांत हो गये।

फिर अगला दिन कौआ और कोयल दोनो ही खाना पका रहे थे। कौए ने कोयल से कहा कि वह तेल लेकर आओ। कोयल तेल लेने के लिए गया लेकिन उसे खेलने के लिए जाना था इसलिए जल्दी-जल्दी में उसने तेल नीचे गिरा दिया। थोडी देर बाद तोता आ रहा था कि तेल से उसका पैर फिसल गया। तोते ने पूछा तो कौए ने कहा कि यह सब कोयल ने किया । और कोयल ने कहा कि कौआ जब खाना बना रहा था उस समय तेल गिर गया था। यह सब इसकी गलती है। अब दोनो ही फिरसे झगड़ने लगे। दोनो ही अपनी गलती मानने को तैयार ही नही थे। तब तोते ने कहा कि रात को जब मैने खाना बनाया था तब शायद तेल गिर गया होगा। इसलिए तुम दोनो झगड़ा बंद करो।

इस प्रकार तोता तीनो पक्षीयों की गलतीयों को छुपाता रहा । लेकिन एक दिन तोता किसी काम से बाहर चला गया था । तोते न कहा कि वह तीन दिन बाद वापिस आ जाऊंगा। और अगर किसी से गलती होती है तो सामने वाली की गलती को माफ कर देना और एक अच्छे परिवार की तरह ही रहना।

तीन दिन बाद वह फिर से उसी पेड़ पर वापिस आता है तो देखता है कि वहां सिर्फ कोयल ही रह रही थी तथा बाकि दोनों पक्षी वहां से चले गये थे। क्योंकि कोई भी अपनी गलती को मान ही रहा था। हर को ई एक दूसरे पर अपनी गलती को डाल रहा था। और आखिर में तीनों ही अलग हो गये। तब तोते ने उन्हे फिर ढुंढा। और तीनों को एक साथ बुलाया और कहा कि पता है कि इस जंगल के सभी पक्षी हमारे इस परिवार की कदर करते है।

कहते है कि परिवार हो तो ऐसा होना चाहिए था। क्योंकि हम सब अलग –अलग जाति के होने के बावजुद भी साथ में रह रहे थे। और तुम सब जानते हो कि में तुम्हारी गलतीयों पर परदा डालता आ रहा हूं ताकि तुम सब एक साथ रहो। लेकिन मेरे जाने के बाद सभी लड़ झगड़ कर बिखर गये। इसलिए मैं कह रहा था कि अपनी गलती को खुद ही मान लेना चाहिए । किसी और पर कभी थोपनी नहीं चाहिए। इससे परिवार टुटता है।

मित्रो हमें भी यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि हमे अपनी गलती को मान कर उसके लिए माफी मांगनी चाहिए। इससे सयुंक्त परिवार का प्यार बढ़ता है।

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