नमस्ते मित्रों, आज हम बच्चो के लिये अच्छी और नयी कहानीयां लेकर आएं है। यहां पर आपको तीन मजेदार कहानीयां मिलेगी। जो आपको जीवन को motivate और inspire करेंगी। हमें पूरी आशा है कि आपको यह कहानीयां बहुत पसंद आएगी।
चित्र कैसा लगा? (डॉनाल ट्रंप के चित्र की कहानी)
मित्रो एक गाँव था, जिसमे एक चित्रकार रहता था । वह बहुत ही सुन्दर चित्र बनाया करता था । एक दिन उसने चित्रकारी मे एक सुन्दर सा चित्र बनाया । उसे लगता था कि वह सुन्दर चित्र नही बना सकता है। इसलिए उसने अगली सुबह उस चित्र को एक चौहराये के बीच लगी मुर्ति पर लगा दिया । और उस चित्र पर लिख दिया कि जिसको भी इस चित्र मे खराबी दिखाई दे कृप्या वह उस जगह पर गोला बना दे।
अब वह मुर्तिकार शाम को वापिस उसी चौहराये पर आता है। जैसे ही वह अपने चित्र को देखता है तो वह बहुत ही उदास हो जाता है। क्योंकि उसके पुरे चित्र पर ही गोले बने हुए थे ।
अब वह घर पर आकर रोने लगता है। उसे यकीन होने लगा कि वह अच्छा चित्र नहीं बनता है। और अंत मे वह चित्रकारी छोड़ने का फैसला लेता है। लेकिन उसी वक्त उसका एक दोस्त आता है। और उसे रोता देख उसका कारण पुँछता है। तब वह सारी बात बताता है। तो उसका मित्र उसे समझाता है कि उसके चित्र बहुत ही सुन्दर है। फिर भी वह चित्रकार मना कर देता है। तब उसका दोस्त उसे फिर से एक चित्र बनाने को कहता है। और कहता है कि इस बार तुम चित्र के नीच लिखना कि जिसे भी इस चित्र में खराबी दिखाई दे कृप्या वह उसे सुधार ले।
अगले दिन सुबह ही चित्रकार वहीं करता है। और लिखकर उसे चौहराये पर लगा देता है। चित्रकार फिर शाम को वापिस आता है। लेकिन इस बार उस चित्र पर किसी भी प्रकार का संशोधन दिखाई नहीं दिया, चित्र बिल्कुल पहले जैसा ही था ।
वह खुशी – खुशी अपने घर आता है। तब उसका दोस्त उसके घर पर ही होता है। चित्रकार उससे पुँछता है कि ऐसा क्यों हुआ ? ; पहले तो सभी को मेरा चित्र बिल्कुल भी पसन्द नहीं था, और अब यह, कैसे?
दोस्त जवाब देता है कि लोग दुसरो कि बुराई करना अच्छे से जानते है । हर कोई दुसरो में बुराई को ही ढुंढता है.। इसलिए तुम्हारे पहले चित्र मे लोगो ने सिर्फ बुराईयां ही निकाली । लेकिन दुसरे चित्र में लोगो को गलती सुधारने को कहा तो कोई आगे नहीं आया । क्योंकि बुराई निकालना आसान है और सुधारना मुश्किल है । इसलिए दोस्त, दुसरो के कहने पर कभी भी हमें अपनी कला पर शक नहीं करना चाहिए ।
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लोग कुछ भी कहे परन्तु हमें अपने उपर पुर्ण विश्वास होना चाहिए। और निरंतर प्रयत्न करना चाहिए।
कुटिया के चार कोनों की कहानी
यह कहानी एक आश्रम की है । गुरू जी ने अपने दो शिष्यों को बुलाया और कहा कि मैं आपको एक ऐसी जगह बताऊँगा जहां पर बहुत सारा सोना छिपाया हुआ है । यह जगह जंगल के बीच में उपस्थित है, वहां पर एक कुटिया बनायी हुई है । तुम दोनो वहां पर जाओगे लेकिन वहा पर सिर्फ एक ही कोना खोदोगे और जो भी मिलेगा वह लेकर आ जाओगे । बाकी तीनो कोनो को मत खोदना ।
अब गुरू की आज्ञा लेकर वह जंगल में चला जाता है । कुटिया में पहुंचने के बाद दोनो ने ही एक कोना खोदना शुरू किया और खोदते हुए उन्हे चांदी के सिक्के मिले । दोनो ही खुश हो गये और सिक्के लेकर कुटिया से बाहर निकल गये । एक बच्चे ने सोचा की क्यों न दुसरे कोने को भी खोदा जाये । लेकिन दुसरे बच्चे ने कहा कि गुरू जी ने मना किया है, हमे आश्रम पहुंचना चाहिए ।
उसने मना कर दिया और कुटिया में जाकर दुसरा कोना भी खोदने लगा । खोदते समय इस बार उसे सोने के सिक्के मिले वह बहुत खुश हो गया, और सारे सिक्के ले लिए । तभी बाहर खड़े दुसरे बच्चे ने कहा की अब चलते, गुरूजी हमारी राह देख रहे होंगे ।
लेकिन उसके मन में लालच आ जाता है । और उसने तीसरा कोना भी खोदना शुरू कर दिया । यह देखकर दुसरा बच्चा आश्रम चला जाता है और गुरू जी को बताता है । लेकिन उसे तीसरा कोना खोदते समय हीरे मिलते है । अब उसका लालच और बढ़ जाता है और चौथा कोना भी खोदने लग जाता है जबकी गुरू जी ने उसे चौथा कोना खोदने के लिए बिल्कुल मना किया ।
लेकिन वह लालच के कारण वह चौथा कोना खोदते हुए, गड़ा इतना अधिक गहरा बना देता है कि वह उसी में फस जाता । वह बाहर नहीं निकल पाता है । और वह एक रात तक वहीं पर फसा रहता है। अब उसे गुरूजी की बात याद आती है और वह बहुत ही पछताता है ।
दुसरे दिन गुरूजी वहां पर आकर उसे निकाल देते और कहते है कि मैने तुम्हे मना किया था । इसिलिए बच्चो हमें हमेशा गुरूजी की बात माननी चाहीए । गुरूजी की बात कभी भी नहीं काटनी चहिए। और हमें लालच कभी भी नहीं करना चाहीए ।
गुफा का रास्ता
एक आश्रम था, जहां कई शिष्य शिक्षा को ग्रहण कर रहे थे। एक दिन गुरू ने कहा कि मैं आज आप सभी की परिक्षा लूँगा।
सभी शिष्यों को एक जगह पर एकत्रित किया । और कहा कि आप सभी के बीच एक भाग-दोड़ की प्रतियोगिता होगी। इस प्रतियोगिता मे प्रथम आने वाले को ईनाम दिया जायेगा। फिर गुरू जी ने कहा कि इस प्रतियोगिता को आप दिमाग से नहीं, बल्कि मेरी दि गई शिक्षा के अनुसार जीतनी है। इस प्रतियोगिता मे मैं अपना प्रिय शिष्य को भी चुनुंगा जो मेरे शिक्षा पर चलेगा। अंत मे गुरू ने कहा कि यह प्रतियोगिता एक बंद गुफा से होकर जाएगी।
कुछ समय बाद प्रतियोगिता शुरू हो गयी और सभी बच्चे दौड़ पड़े । दौड़ते हुए दो बच्चे सबसे पहले उस बंद, अंधेरी गुफा के पास पहुँच गये। और जैसे ही गुफा के मध्य मे पहुँचे तो उनके पाँव मे कुछ चुबने लगा। अब दोनो के दिमाग मे अलग -अलग विचार आए, पहले ने सोचा कि मुझे प्रतियोगिता जीतनी है और जल्दी से दौड़ पडा।
लेकिन दुसरे ने सोचा कि प्रतियोगिता तो आगे भी होती रहेगी , परन्तु इस रास्ते से पीछे आ रहे मेरे भाई- बंदु को यह पत्थर न लगे, इसलिए वह वहां पर उन पत्थरों को चुगने लगा। इस प्रकार पीछे से आ रहे बच्चे को वह यही कहता कि सावधानी से जाना आगे पत्थर है। लेकिन सभी सोचने लगे कि यह हमे रोकना चाहता है। और वे तेजी से दौड़ते हुए चले गये । लेकिन वह सारे पत्थर चुगकर सबसे पीछे आश्रम पहुँचा ।
गुरू जी ने प्रथम आने वाले बच्चे को ईनाम दिया। और पुछा कि क्या तुमे पत्थर लगे थे? बच्चे का जवाब, ‘हाँ’ । लेकिन गुरू जी मैं उने छोड़, दौडकर चला आया। बाकि शिष्य से भी पुँछा गया तो पीछे से आने वाले बच्चो ने ‘नहीं’ , गुरू जी। फिर गुरु जी ने सबसे पीछे आये बच्चे से पुँछा कि तुम तो सबसे तेज दौड़ते हो, फिर पीछे कैसे रह गये?
उसने कहां, गुरु जी गुफा में पत्थर थे और मैं उन्हे चुगने लग गया था। इसलिए मैं लैट हो गया । जीदंगी में तो प्रतियोगिता होती रहती है और आपने मुझे यही शिक्षा दि कि हार – जीत तो होती रहती है। लेकिन हमे अच्छाई को कभी नहीं छोड़ना चाहीए। तब गुरू जी ने कहा, ‘बहुत अच्छा’ । आप ही मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो । और आपका ईनाम आप ही के पास है ।
शिष्य ने कहा, ’मतलब’ । गुरू जी ने कहा कि जो आपने पत्थर चुगे थे, उसे आप अपने जेब से बाहर निकालिए।
जैसे ही शिष्य ने पत्थर बाहर निकाले, वे पत्थर नहीं बल्कि हीरे थे।
शिक्षा- दुनिया में हार – जीत होती रहती है। लेकिन हमें अपनी अच्छाई नहीं छोड़नी चाहीए।